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१९४ (रोटेण्ड्स ३५०) बेकरार गुदने चाँदा . ज कमारे इक लाख (ोरको ग्रेगम चाँदको विकटता) परी गवेझ सेज न भावइ । रेन चॉद रिहफइ चुपलावइ ॥१ कहु तिहिं सूख्न करन घर पसा । निस सर चढा चीत मोर उसा ॥२ जहिं कहुँ होइ सिंह जाइ चुलावहु । सरुज आनि सेज वैसाबहु ॥३ चाँद मरत लै सुरुज जियावइ । तू का करसि मोतें हुत आवड ॥४ आनि निरस्पत सूपा सरनां । रात देवस आह महिं भरना ॥५ अंग दाह मन चटपटी, घर पाहर न सुहाइ ।६ चॉद न जिये भानु चिनु, आनु पिरस्पत जाइ ॥७ टिप्पणी-(१) दिहफइ-भिाई पाठ भी सम्भव है। दोना हरी मिररपत (बृहरपात) या देशज रूप है। (७) भानु-सूरज । यहा तात्यय लारसे है । अनु- जाओ। १९५ (रीटेण्ड्स १.१) ऐजन । दर बेकरारी चांदा गेपद (चदको प्याकुरता) हो निसि चाँद सुरुज कर पायउँ । देवस होड चढि सरग योलापउँ॥१ चाँधे पँवर पॅवरिया जागहिं । तसकर चीर देखि डर भागहि ॥२ तो यहिं कहाँ ईत पोसाऊ । रैन कॉट हिय उठे संताऊ ॥३ पाउस रात देखि अधियारी । कितहुत सुरुज हंकार पारी ॥४ जो मन रूचि सोइ पियारा | भृग आँत किहि पारुसुवारा ॥५ टेवस चार तुम्ह माधन, रहूँ जिवे के आस ।६ चाँढ मुरुल से मिरउच, पाँह भोग विलाम ॥७