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१९२ (रोहण्ड्स १४८) अज सहरा बेसानये आमदने लोरक व पाय उप्तादने मैंना (लोरकका घर आना और मैनाका पैर पर गिरमा) देवस दहाँ दिसि फिरि फिरि आवइ । चाँद लागि निसि रोइ विहावइ॥१ खिन एक संग साथ न बसे । गया अमर चन मंदिरहि पैसे ॥२ मैना आड पाइ लै परी । लोरक वैसु कहूँ एक घरी ॥३ नहाइ धोइ बस्तर पहिराऊँ । औ घिसि चन्दन सीस फिराऊँ ॥४ मेज विछाड फल पर डासो । पिरम लागि मन सान्त करासों ॥५ उत्तर न देहि प्रेम छल फटा, सोइ नार बिललाइ ६ ____सों नहिं सुनै चॅदर पर चिन्ता, रहा नैन दोइ लाइ ।।७ टिप्पणी-(१) दहाँदिसि-दसो दिशा। (३) कहूँ-कही। (रीलैण्ड्रा १४१) सहरा गिरफ्तने लोक अज आमाले फिराये चाँदा (चॉदाके वियोगमै लोरकका वन गमन) रैन चाँद जो देउ बयानाँ । मरो मरो के देवस तुलाना ॥१ चला धीर बनखण्ई जहाँ । सिंघ सिंद झंकारहिं तहाँ ॥२ सकर दिवस बन बस्ती मेंबई । रैन आइ गोवर महें गॅबई ॥३ मक चॉदा खिन एक दिसरावइ । तिहिं असरेंनिस गोवरॉ आवइ॥४ मिरग पंथ रोइ लोटें लारह । पाउ धरत मुख चॉदा आवइ ॥५ इह पर रैन चुरावद, औ दिन फुनि ह भाँत ।६ चाँदा सनेह बउरावा, तिल एक होइ न सॉन ॥७ टिपणी-(२) सिप सिंदूर- देखिये टिप्पणी १२४१५ ॥ (४) अमर-आशामे (७) यउरावा-पागल हुआ।