यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१९०
 

(रोटेण्ट्स १४६) पन्द दादने बिरस्पत चॉदा लोरख रा ये दुर कुन लिबासे जोग (विरस्पतका घाँदकी ओरसे लोरक योगी पेश रयागनेको कहना) अपहिं सूरुज मन रास रखावहु । बहुत चॉद सर दरसन पावहु ॥१ तजु लोर दरसन औ मढ़ी। सरग चाँद विधि भगवन गढ़ी॥२ जो हर बसे तराई धावइ । चॉद सुरज किंह ओर पठावइ ॥३ सो वचन सुनी लोरक घबरा । दोऊ पायें सीस धर परा ॥४ निरस्पत वचन लोर जो मानी । के खेरवान पियायसि आनी ॥५ प्रथम देउ मनायउँ, फुनि रे चिरस्पत तोहि ॥६ [---] परों लै तारा, चॉद मिराबहु मोहि ॥७ (रीरेण्ड्स १४७) पुरु आवदंने लोरक लिबासे जोग व चेपानये सीश रफ़ने कोरब व रिरस्पत (लोरका योगी येश त्यागना : लोरक और विरस्पतका अपने अपने घर जाना) सँघर दरसन जोग उतारा । मढ़ि तजि घर मेदिर सिधारा ॥१ चली बिरस्पत सुरुज पठाई । चाँद नारि कह पात जनाई ॥२ चाँद पिरस्पत सेउँ अस कहा । कहु, मदि सॅवर कम अहा ॥३ नन रकत झरॉ असरारू । भुगुति न जानी नीद अहारू ॥४ मिलन काम विधा न सॅभारे । चाँद चाँद निसि ठादि पुकारे ॥५ मीस धुनत सिंह दिउ रैन, जनु नाउत अभुआइ ।६ कहत मुनत अयहाँहुत, आयउँ मंदिर पटाइ ॥७ टिप्पणी-(६) अनुभाइ (पा० अभुभाना)-भूत प्रेत लगने पर पटांग पाना।