(रोटेण्ट्स १४६) पन्द दादने बिरस्पत चॉदा लोरख रा ये दुर कुन लिबासे जोग (विरस्पतका घाँदकी ओरसे लोरक योगी पेश रयागनेको कहना) अपहिं सूरुज मन रास रखावहु । बहुत चॉद सर दरसन पावहु ॥१ तजु लोर दरसन औ मढ़ी। सरग चाँद विधि भगवन गढ़ी॥२ जो हर बसे तराई धावइ । चॉद सुरज किंह ओर पठावइ ॥३ सो वचन सुनी लोरक घबरा । दोऊ पायें सीस धर परा ॥४ निरस्पत वचन लोर जो मानी । के खेरवान पियायसि आनी ॥५ प्रथम देउ मनायउँ, फुनि रे चिरस्पत तोहि ॥६ [---] परों लै तारा, चॉद मिराबहु मोहि ॥७ (रीरेण्ड्स १४७) पुरु आवदंने लोरक लिबासे जोग व चेपानये सीश रफ़ने कोरब व रिरस्पत (लोरका योगी येश त्यागना : लोरक और विरस्पतका अपने अपने घर जाना) सँघर दरसन जोग उतारा । मढ़ि तजि घर मेदिर सिधारा ॥१ चली बिरस्पत सुरुज पठाई । चाँद नारि कह पात जनाई ॥२ चाँद पिरस्पत सेउँ अस कहा । कहु, मदि सॅवर कम अहा ॥३ नन रकत झरॉ असरारू । भुगुति न जानी नीद अहारू ॥४ मिलन काम विधा न सॅभारे । चाँद चाँद निसि ठादि पुकारे ॥५ मीस धुनत सिंह दिउ रैन, जनु नाउत अभुआइ ।६ कहत मुनत अयहाँहुत, आयउँ मंदिर पटाइ ॥७ टिप्पणी-(६) अनुभाइ (पा० अभुभाना)-भूत प्रेत लगने पर पटांग पाना।
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