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टिप्पणी--(१) परा-(स० वट-गोल टिक्यिा ), मँग या उदयो भिगो पर पीसकर बनायी गयो गोल टिक्यिा । मुंगौरा-मुंगको पीस पर मसाला डाल कर बनाया जाता है। यह एक प्रकारका बडा ही है किन्तु इसमें टिक्यिाका रूप नहीं देते वरन् पिट्टी पिण्ड बनाकर घी या तेल्मे अनते है । सडई-वेसनको पानी में घोल्वर फढाइम हल्वेकी तरह गादा परवे नमकीन बनाते है । (यासुदेवशरण अग्रवाल, पदमावत (२) मिधारी-पेठेथे साप उरदकी दारको पास पर मेथी आदि मसाला डाल पर बनायी गयी बडी। डी-डुभयौरी, एक प्रकारको पकौडी जिसे घी या तेल्म नहीं तलते वरन् पानीम सोलते है । वह सौलते पानीम ही पक्ती है । (4) नरसी-सटाई | धारि--डाल्वर। एपसी-हएवा से मिलता जुलता पक्यान । इसे भी घीम आटेको भूनकर बनाते है किन्तु यह सूसा न होकर गीला होता है। (६) सिरसा-देना। सजाउ-जमा हुआ, ऐमी दही जिसरे ऊपर मलाईकी तह जमी हो। (७) खंडई-यहाँ सम्भवत कविरा तासय मिटाईसे है । १५८ (रीरंण्ड्स १६) सिफ्त पिर जहाय हर जिन्सी गोपद (चावलों का वर्णन) गीरसार रितुसार पिकौनी ! कर्रा धनियाँ मधुकर तूनी ।।१ सगुनाँ छाली औ चौधरा | कार सँडर काँडर भरा ॥२ अगरसार रतनाँ मतसरी । राजनेत मोढ़ी सासरी १३ करेंगी करेंगा साठी लिये । मुरमा भन्मा महमर लिये ॥४ पकये धर कुण्डर आगरधनी । रूपसिया दहि सोनदही ॥५ कदोझा अतिधूपी, काढ़े पय पसाइ ६ जस बसन्त वन फूलइ, चहुँ दिसि पास गॅधाद ॥७