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ध्यान वासुदेवशरण अग्रवाल का गया। उन दिनों वे मलिक मुहम्मद जायसीने पदमावतकी सजीवनी व्याख्या प्रस्तुत करनेमें लगे थे। रामपुर में रजा पुस्तकालयम पारसी लिपिमै अक्ति पदमावतकी जो प्रति है, उसके प्रथम पृष्ठ पर उन्हें चन्दायन शीर्षफरे साथ उक्त अन्धकी चार पत्तियाँ अक्ति मिलीं । इन पचियोयो उन्होने पहले एक लेसमें पिर अपनी पदमावतकी भूमिकामें उद्धृत किया। उन दिनों में वासुदेवशरण अग्रवालपे निकट सम्पमें था तथा काशी विश्वविद्यालयके भारत कला भवनमें सहायक संग्रहाध्यक्ष पद पर काम कर रहा था। अत चन्दायनका इस प्रकार परिचय मिलने पर मेरा ध्यान तत्काल भारत पला भवनमे राग्रहीत अपभ्रश शैली उन ६ चिोंकी ओर गया, जिनकी पीठ पर पारसी लिपिमें आलेख हैं । ये चिन बीस पचीस वर्ष पूर्व राय कृष्णदासको काशीरे गुदडो बाजारमे मिले थे । उनकी कलापारसी दृष्टिसे उसका महत्व छिपा न रह सका और वे उन्हें क्दाचित दो-दो आनेमे सरीद लाये थे। कला इतिहासी दृष्टिसे इन चित्रोंका अत्यधिर महत्व है। वे भारतीय कलासे सम्बन्ध रखनेवाले अनेक प्रन्यों में प्रकाशित हो चुरे हैं और उनकी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति है। राय कृष्णदासने पृष्ठाक्ति आलेखोंको पढकर इतना तो अनुमान कर लिया था कि वे किसी अवधी कान्यके पृष्ठ हैं पर क्सि काव्य पृष्ठ है, इसका उन्हें कोई अनुमान न हा सका था। पत• कला पुस्तकों में सर्वन इन चिनाकी चर्चा अज्ञात अवधी काव्यये पृणेके रूपमें ही हुई है। मैंने इन चिों आरेसोंगी परीक्षाकी और उन आलेखोंमे जहाँ-तहाँ लोरफ (काव्यके नायक) भोर चन्दा (काव्यकी नायिका) का नाम पाकर मुझे इस बातमें तनिक भी सन्देह न रहा कि वे पृष्ठ चन्दायनके ही हैं। मेरे इस शोध के परिणाम स्वरूप कला क्षेत्रमें यह बात स्वीकार कर ली गयो कि चे चित्र लौरक चन्दाकी कथा है। क्रा क्षेत्रमै चन्दायनकी जानकारी इससे भी पहले थी। पजाप समहान्यमें २४ चित्रों की एक माला थी, जो अब पाक्स्तिान और भारतके बीच पँट गयी है । (१४ चिन लाहोरके संग्रहाल्यमे रह गये और १० चित्र भारतको मिले, गे अव पटियाला स्थित पजाबरे राजकीय सग्रहालयमे हैं।) इन चित्रों के पीछे भी पारसी लिपिमें आलेस है। उन आलेखोसे उन सग्रहाल्यके समहाध्यक्ष ने यह जान लिया था कि वे और और चन्दा नाम प्रेमी प्रेमिकासे सम्बन्ध रखनेवाले किसी काव्य प्रन्यये पृष्ठ है । उहोंने लाहौर राग्रहालय चित्राकी जो सूची प्रकाशित की, उसमे इन चिनोंका परिचय इसी रूपम दिया है। इन चिनोंची विस्तृत विवेचना कार्ल सण्डालावालाने पपईकी मुप्रसिद्ध कला पकिरा मार्गम पी है । यहाँ उन्होंने इन चित्रोंको लौर-चन्दा १ भारतीय साहित्य (भागरा), वर्ष १, अक १, पृ० १६४ ! २ एमावत, सजीवनी व्यास्या, चिरगाँव (झाँसी), १९५६ ३०, पृ० १२ । ३ एरित बना, दिल्ली, अक १-२, १० ७०, पा००३। ४ ग्लाग आव द पेंग्जि इन द सेण्ट्रल नियम लाशेर, चित्र २०७-३० ।