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१६९ क्षेत्रमें क्लोरा कहते है । परवर-परवल । यह लता पर होता है और गरमी बरसातमे पलता है। कुंदरूं-(स०-बुन्दुरु)--परवल्ये आकारकी सब्जी, जो बरसातमे होता है। इसे संस्कृतमे बिम्ब या विम्बक भी कहत है। पकने पर इसका फल लाल हो जाता है। इसी कारण कवियोने ओठोके उपमानके रूपमे इसका प्रयोग किया है। धी सुरई-पिया तरोई । यह भी बरसाती तरकारी है और बेल पर होती है। अरुई-अरवी, धुइयाँ । यह जमीनरे भीतर होता है। इसके पत्ते कमलके पत्तेरे समान होते है। (४) पालकयह पत्तेदार तरकारी है । इसके पत्ते चौडे और चिकने होते है। चौलाई-यह बरसाती साग है। इससरी पत्ती चिकना तथा लाल अथग हरे रगका होता हे। (4) लौआ-लौकी । यह लताम उगनेवाली तरकारी है जो आकारमे लम्बी और मुलायम होती है। चिचिंदा-यह साँपकी तरह हमा और धारीदार तरकारी है जो यरसातमे होती है । तोरई-घियातरोई की जातिकी तरकारी । सेंब-(स० शिया, शिम्बिका) सेम, लतामें रूगनेवाली फली जातिसरी तरकारी। (६) गंगल-गलगल, एक प्रकारग ना नीबू । (७) संधान-अचार । १५७ (रीलैण्ड्स ११५) सिफ्त पक्वान दर र जिन्सी गोयद (पकवान वर्णन) चरा मुंगौरा बड़ते कीन्हें । खेडुई काढ़ि घिरत मैं दीन्हें ॥१ बने मिथौरी छड़कुल परे । औ डुबकी जिहें मिरिचें परे ॥२ भूजी कैय करेय पापा । पानि अदाकर गुशिय लाफा ॥३ रोटा गूंद किये मिरचवानी । और उभार राइ कर पानी ॥४ तुरसी पालि कढ़ी औटाई । लपसी सोंठ बहुत कै लाई ॥५ द्ध फारि के सिरसा, बॉधा दही सजाउ ६ और खेडई को कहि, जाकर नाँउ न आउ ॥७