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सरला शुक्लाके शोध निबन्धकी परिधिमें दाऊद नहीं आते। यदि उन्होंने उनके सम्मन्धमें एक शब्द भी न लिसा होता तो कोई आश्चर्य की बात न होती, पर आश्चर्य तो यह देखकर होता है कि दाऊदके लिए उन्होंने एक रुम्बा पैराग्राफ व्यय किया है। फिर भी उसमें पूर्वके शोधोंसे ज्ञात सोकी कोई चर्चा नहीं है। उनकी दृष्टि में रामकुमार वर्माका कथन बदायूनीके कथनसे अधिक महत्व रखता है। शुक्लाके कथनको उद्धृत करना उनको अनावश्यक महत्व देना होगा। विमल कुमार जैनने अपने निवन्ध, सरला मुक्लाकी तरह विम्तारमे न जाकर, दाऊदके लिए दो-तीन पक्तियाँ पर्यात माना है और उनमें उन्होंने रामकुमार वर्माके कयनको दुहरा भर दिया है। ____ इन शोध निबंधों के प्रकाशनसे अनेक वर्ष पूर्व वि० स० २००६ (१९५० ई.) में अगरचंद नाहटाने नागरी प्रचारिणी पत्रिका में मिश्रबन्ध-विनोदकी भूलें शीर्षक एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें मिश्रबन्धु के दाऊद सम्बन्धी कथन की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने सूचना दी थी कि रायतमल सारस्वत को नरक-चन्दावी प्रेम कहानीकी एक प्रति मिली है और उस प्रतिके एक कड़वकके अनुसार चन्दायनकी रचना ७८१ हिजरी में हुई थी। इस प्रकार १९५५ ई० से बहुत पूर्व, जब कि ये सभी निबंध शोधकी स्थितिमे भी न आये थे, बदायूनीका मामाणिक कथन एव चन्दायनकी एक प्रतिका अस्तित्व प्रकाशमं आ चुका था। पर सेदजनक आश्चर्य है कि इन अनुसन्धिरमुओंमें से किसी ने भी उनपर ध्यान देनेकी आवश्यकताका अनुभव नहीं किया । १९५६ ई० में परशुराम चतुर्वेदीने अब अपनी दूसरी पुस्तक भारतीय प्रेमाख्यानकी परम्परा प्रकाशित की तब उन्होंने सन्दिग्ध मावसे कहा कि राजस्थानमें एक उपलब्ध अधूरी प्रतिके अनुसार चन्दापनका रचना-काल सं०१४३६ होना चाहिये। • इस प्रकार १९२८ ई० से लेकर १९५६ ई. तक सूफी साहित्य और मेमा- ख्यानक काव्यों को लेकर शोधमा ढिंढोरा तो खूर पिटा, पर हिन्दी साहित्यके विद्वानों और अनुसन्धित्सुओंकी जानकारी इस बाततक ही सीमित रही विदाऊदने चन्दायन नामक योई प्रेमाख्यानक काव्य लिसा था। उसकी एक प्रति उन्हें शात भी हुई तो उसकी ओर समुचित ध्यान ही नहीं दिया गया। लोग रामकुमार वर्माकी धुरी पर चक्कर काटते रहे। चन्दायनी प्रतियों की सोजका वास्तविर कार्य ऐसे लोगोंने आरम्भ किया, जिनका सम्बन्ध हिन्दी साहित्यसे कम पुरातल और इतिहास से अधिक है। यह कार्य उन्होंने १९५२५३ ई० में ही आरम्भ कर दिया था। चन्दायनकी और सर्वप्रथम १ जायसीके परवत हिन्दी सूफी कवि और काव्य, लखनऊ, स० २०१३, पृ० १३८ । २. सूफीमत और हिन्दी साहित्य, दिल्ली, १९५५ ई०, १० ११२ । ३ नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५४, स० २००६, पृ. ४२ । ४. भारतीय प्रेमाख्यान की परम्परा, प्रयाग, १९५६ ई०, पृ० ८८ ।