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१४२ (रीरेण्ट्स : ) दुम्बाल कर्दने लोक अज लसरे राव रूपचन्द (ोरकका रूपचन्दकी सेनाका पीछा करना) लोरक कहाजान जनि पावहिं । तस मारों जस फिर न आवहिं ॥१ मारहिं पायक कीचहें भरे । रह रकत पूरह भरे ॥२ मार महावत हाथी धरे । धीर न ठाढ घोड़ पासरे ॥३ बहुते चीर जियत घर आनें । बहुतै जीउ लै निसर पराने ॥४ मारत सड़ग मूठ अस लागी । परी सॉझ राजा गा भागी ॥५ मरिहं न सूझे धरती, रकत भयउ पैराउ ।६ चला गॅवाइ राउ दर आपुन, बहुरिन आवइ काउ ॥७ टिप्पणी-(१) जनि-मत, न । १४३ (रीरेण्ड्स ८७ ; पंजाब [प]) सिफ्ते जानवरान मुर्दार सार (मुर्दा खानेवाले जीव) गीधहि नोता केतन हकारा' । कीत रसोई अगिन परजारा ॥१ आज यांठ इतै खेड तारा ।' लोर बसायें करउँ जेउनारा ॥२ नोता काल देस कर आवा । चील्ह के दर मॉडो छावा ॥३ सरग उड़त सवरहर सीनी । काल करोहँ भाँत दस कीनी ॥४ सुनाँ सियार पितरमुसं आवा । रैन बास सब जात बुलाना ।।५ कूद माँस धर तोरव, रकत भरय लै कुण्ड ।६ आठ माँस धरि जेवत, सात मॉम लहि मुण्ड"।७ पाटान्तर-पजाब प्रति- गीर्षक कापी रम्या है किन्तु उपलब्ध फोटोम अपाच्य है।