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१४१ के मन्त जस तुम्ह उपजे, राजा कीजह सोइ ।६ उक्त सूर गढ़ तोरे, फुनि तजियावा होइ ।।७ (रीलैण्ट्स ६९) मुशांचिरत कर्दने महर बालकरियाने मुकरिये खुद (महरका अपने सेनानायकोंसे परामर्श ) महरै मुख कुँवरहिं कर चाहा । झेतस कुरे इह पोले काहा ॥१ बहुतहि कहा चाँद जो दीजै । एक मुख होइ राज फुनि कीजै ॥२ और कहा पर निकर पराई । दिवस चार पाहर के आई ॥३ कॅवरू धेवरू दीने गारी । जे न जरमहिं सो माइ मयारी ॥४ पूंजहि पैठे पाटन गाँऊँ । अब जिउ देहु चॉद के ठाऊँ ॥५ जौलहि साँस पेट महें, तौलहि करिह मारि ।६ फुनि सूरज पह मरिहहिं, जइस होइ उजियारि ॥७ ११२ (रीरेण्ड्स ७७) सिपत असवान राव महर (राव महरके अश्वोका वर्णन ) महरै कादि तुखार बुलाने । इन्ह दस धरे पौर मॅह आने ॥१ हंस हंसोली भंवर सुहाये । हिना यक खिंगारे बहु आये ॥२ उदिर सॅमुद भुइँ पाउनरिहै । भाव गरम ते नाचत हैं ॥३ यह तुरंग तीन पा ठाढ़े । नीर हरियाह पखरिन्ह गाढ़े ॥४ योर गर्रया अउरो अहा । इन्ह अस रूप जो चुत ते रहा ॥५ पौन वाइ परत सम देही, देसत रास उड़ाई ६ पहुल धार धरि धावहि, थाप थिर न रहाहिं ।।७ टिप्पणी-(१) तुसार-चोदे : मुल्त. यह मन्य एशिया एस्थित शर्को एक कमाल