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राहु केतु घर उठे, दसा सूर भा आइ ६ सूक सोह उत्तरा पॅथ, जोगिनि बाहर सब लै जाइ॥७ टिप्पणी-(१) तलनकारा, धौसा, स्टानगइसके फारसी कोपरे अनुसार तबल ढोलकी सगा है जो घोड़े या ऊँटपर रख कर बजाया जाता था। (२) कटकारा-सैनिक। (३) घोर-शोडा । पाखरे-पक्सरयुक्त, क्वचधारी । (४)वा-(स० तूय, प्रा. तूर) तुरुही । सींगा-~-सांग का बना हुआ बिगुल । (रीलैण्ट्स ५६) सिफ्ते असमाने अरसी ताजी राव रूपचन्द (राध रूपचन्दके अरबी अश्व) आनों भाँत दीस कैकानॉ । ॲगुरा दोइ-दोइ तिहँ कै कानाँ ॥१ सेत कियाह कार जनु रीठा । हरीयाँत मुस झमकत दीठा ॥२ कार संकोची लोह चाहें । समुद लॉघि जनु लंघन चाहें ॥३ नैन मिरघ जनु पाइ पखारी । परन पंस देखत हरियारी ॥४ घात चडै मुख धाथी दीजा | तंग घिसार चैत धर लीजा ।।५ करे सॅमुद हुत काढे, के यह पायि पयान ६ सोन पासर साल के, आन पिये पलान ॥७ टिप्पणी-(१) भाँत भॉति प्रकार । कैकाना-घोडे । कैकान नलुत बोल्न दरेंके दक्षिण, यचिस्तानके उत्तर पूर्व, मन्तुग और कलातरे आस पास के रस नाम है। वह अति प्राचीन कालसे घोगें की अच्छी नस्लरे लिए प्रसिद्ध है। वहाँके घोडोंका उल्लेग भोज कृत युक्ति कल्पतरु (अश्व परीक्षा, दोक २६), मानसोल्लास (४६६०) नकुल कृत अम्ब चिकित्सा (२१८) और शालिभद्र सूरि कृत याहुबलिराम (पारमा गतीमे रचित) में हुआ है । कालान्तरम कैकान घोनोंका पयायवाची बन गया । भगुरा--अगुल । (२) सेत-उपेट सफेद। वियाह-कल्मेह लाल, नाड के पके फलका रंग | कार-काला। रीठा-एक पल जिसका छिलका पाला