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५७-६५ (अप्राप्य) [सम्भवतः यहाँ रेप नौ महीनों का वर्णन नौ पटकको में रहा होगा।] (पम्बई २२) आमयने याजिर दर गोबर व गुजिस्तन बजार यस चॉदा व दीदन व आशिक शुदन व उफ्तादन (गोवरमें याजिरका आना और चाँदाके महर के नीचे से जाना और उसे देख कर मोहित होकर भूचित्त होना) वाजिर एक कितहुत आवा । गोपर फिरै विहाऊ गावा ॥१ घर पर भुगुति मॉग लै साई । सिन सिन राजदुआरिहँ जाई ॥२ दिन एक चॉद धौरहर ठाढ़ी । झॉकसि मॉथ झरोसा काढ़ी॥३ तिह सन याजिर मॅड़ उचात्रा । देखसि चॉद झरोखें आवा ॥४ देखतहिं जनु नौहारहिं लीन्हा। विदका चाँद झरोखा दीन्हा ॥५ धरहुत जीउ न जाने कितगा, कया भई विनु सॉस ६ नैन नीर देह मुंह छिरकहि, आये लोग जिहि पास ॥७ टिप्पणी-(१) याजिर- -वद्रयानी योगी । बिहाऊ-बिहाग । (२) भुगुति-भुत्ति, भोजन | (३) माथ-सर | शरोखा-(स० जल गवाक्ष) महरू का वह खान या गोस जहाँ बैट पर राजा प्रजा को दर्शन देते या महल से बाहर देसने थे, सिडको । कादी-निसल पर। (४) मूंट-सर । उचाधा-ऊँचा रिया, उपर उठाया। नाहारहि-मर पर जी उटने यो नौहार रैना रहते हैं। विदा- बन्द कर दिया। ६७ (हिण्ड्स ३४) यरसीदने रुल्य पाजिर रा जब हाले येहोशी (याचिरफी मूर्खा सुन कर जनतामा भाना) कहु घाजिर तोर चेदन काहा । लोग महाजन पूछत आहा ॥१ पोर कहसि तू मॅह विनानीं । औसद मूर देहुँ तिहिं आनी ॥२