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(अप्राप्य)
[सम्भवतः यहाँ रेप नौ महीनों का वर्णन नौ पटकको में रहा होगा।]
(पम्बई २२)
आमयने याजिर दर गोबर व गुजिस्तन बजार यस चॉदा व
दीदन व आशिक शुदन व उफ्तादन
(गोवरमें याजिरका आना और चाँदाके महर के नीचे से जाना
और उसे देख कर मोहित होकर भूचित्त होना)
वाजिर एक कितहुत आवा । गोपर फिरै विहाऊ गावा ॥१
घर पर भुगुति मॉग लै साई । सिन सिन राजदुआरिहँ जाई ॥२
दिन एक चॉद धौरहर ठाढ़ी । झॉकसि मॉथ झरोसा काढ़ी॥३
तिह सन याजिर मॅड़ उचात्रा । देखसि चॉद झरोखें आवा ॥४
देखतहिं जनु नौहारहिं लीन्हा। विदका चाँद झरोखा दीन्हा ॥५
धरहुत जीउ न जाने कितगा, कया भई विनु सॉस ६
नैन नीर देह मुंह छिरकहि, आये लोग जिहि पास ॥७
टिप्पणी-(१) याजिर- -वद्रयानी योगी । बिहाऊ-बिहाग ।
(२) भुगुति-भुत्ति, भोजन |
(३) माथ-सर | शरोखा-(स० जल गवाक्ष) महरू का वह खान या
गोस जहाँ बैट पर राजा प्रजा को दर्शन देते या महल से बाहर
देसने थे, सिडको । कादी-निसल पर।
(४) मूंट-सर । उचाधा-ऊँचा रिया, उपर उठाया।
नाहारहि-मर पर जी उटने यो नौहार रैना रहते हैं। विदा-
बन्द कर दिया।
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(हिण्ड्स ३४)
यरसीदने रुल्य पाजिर रा जब हाले येहोशी
(याचिरफी मूर्खा सुन कर जनतामा भाना)
कहु घाजिर तोर चेदन काहा । लोग महाजन पूछत आहा ॥१
पोर कहसि तू मॅह विनानीं । औसद मूर देहुँ तिहिं आनी ॥२
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