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(रीरेण्ड्स १२) सिफ्त क्सहाय राय महर गोयद (राय महरके महलोका वर्णन) फुनि हो कहाँ धौराहर बाता । इंगुर पानि हार कइ राता ॥१ सतखेड पाटा आनों भाती । सात चौसण्डी भयी जिंह पॉती ॥२ चौरासी [-] बसे उचाई । लसी दरें अती सुहाई ॥३ अस रचना के कौन बनानी । सातौ करस धरै सुनवानी ॥४ कनक खम्भ जड़ मानिक धरे । जगमगाहिं जनु तरई भरे ॥५ अगर चॅदन अन्तो ले, अछर सुहावन वास ।६ देव लोग अस भाराहिं, मॉ आह कविलास ॥७ टिप्पणी-(१) धौराहर-स. पालगृह, राजमहल्के भीतर रनिवास धवलगृह पहलता था । इसे अन्त पुर भी कहते थे। सतचर-सप्तभूमिक प्रासाद, सतमजिला महल। इस प्रकारके राजप्रासादोंकी कल्पना गुप्तकालते ही इस देशम प्रचलित थी। दतियॉम सतरहवीं शतीका वीरसिंह देवका महल सतरसण्डा हे। आनो--अन्यान्य, अनेक प्रकारचे, भाँति भॉतिये, तरह तरहके । रोक्मे बहु प्रचलित इस सीधे सादे शब्दसे परिचित न होने कारण माताप्रसाद गुप्तने पदमावत और मधुमालतीभे सर्वत्र पारसी लिपिमे लिये 'अल्पि', 'नून', 'वाव', 'नून'को 'अनवन' पढ़ा है और उसके अनवन <अन्यवर्णके विकृत पाठ होनेकी किलष्ट कल्पना की है । चौखण्डी--चार सण्डकी चौकियाँ अथवा पुर्ज। (४) करस-पलश, गुम्बद । सुनबानी-सोनेचे वर्णवाला, सुनहरा । (७) मक्--मानों । कविलास--स्वर्ग । (२) (रीलैण्ड्म १३) सिफ्त हरमाँ राय महर हन्ताद व चहार बूदन्द (राय महरको चौरासी रानियोंका उल्लेख) राय महर रानी चौरासी । एक एक के तर चेरि अकासी ॥१ बेकर कर होइ जेउनारा । चेकर मंदिर सेज सँवारा ॥२