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भाट हॅकारे कूद चंड़ि, हम देसा होइ अवार ६ अचॅह बधावा गोवर, घर घर मंगराचार ॥७ टिप्पणी--(१) छरहँटा--स० छल छलका बाजार, जादूका तमाशा | पेखन- स० प्रेक्षण = नाटक, तमाशा । जोई-स्त्री। परवा-पी | राम रमायन-इस उल्लेससे यह स्पट प्रस्ट होता है नि तुलसीदास कृत रामायणकी रचनासे बहत पूर्व तोक्में राम कथा व्यात हो चुकी थी और लोग रामायण नामक पिसी रचनासे पूर्ण परिचित थे और उसरा पाठ किया करते थे । भवनों में उसके चित्र वनते थे यह २०५३ क्टयरसे ज्ञात होता है। अन्यत्र भी कई म्थरों पर रामायणसी घटनाएँ अभिप्राय रूपमें ग्रहीत है । (.) कीनर-किन्नर, सम्भवत यहाँ तात्पर्य हिजडोंसे है । (१) अपान-अपाणी>जवानी अपन, मूक । ३० (रीरेण्ड्म ११) सिफ्त दरबारे राय महर गोयद (राय महरके दरयारका वर्णन) कहाँ महरिह वारि बसानि । बैठ सीह गढ़ से धरै बनानी ॥१ बहुत बीर सिंह देख पराहे । हिये लाग डर सेंद न साह ॥२ देसत पौर दीठि फिरि जाई। एक सूत सतधार उँचाई ॥३ औट रूप के पानी हारा । अस के महरि दुवारि सॅचारा ॥४ सात लोह एकहिं ओटाने । बजर केवार पौर गढ़ लाने ॥५ रातहिं वैमे चौकी, कुन्त सरग रहि छाइ ।६ पासर सहस साठ फिरि, चाटॅहि सॅचर न जाई ॥७ टिप्पणी-(१) वारि-घर, निवास स्थान । मीह-सिह, गध्यकालीन घरों के प्रवेश द्वारपर दोनों ओर दो सिंह बनानेकी प्रथा थी। उन्हें प्राय मरोडदार पूंछ पटगारते और जीम निकाले हुए बनाया जाता था। पनानी-वर्ण, मॉतिरे, तुल्ना कीजिये-ग्रह बनानने नाहर गई (पदमारत ४१॥)। (५) केपार-रिसाट, दरवाजा । (६) कुन्त -पैदल सैनिकों द्वारा प्रयोग आनेवाला यां।