यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गोदान
९३
 


आये थे। किसी से दबना न जानते थे। खद्दर न पहनते थे और फ्रांस की शराब पीते थे। अवसर पड़ने पर बड़ी-बड़ी तकलीफें झेल सकते थे। जेल में शराब छुई तक नहीं,और ए० क्लास में रहकर भी सी० क्लास की रोटियाँ खाते रहे,हालाँकि, उन्हें हर तरह का आराम मिल सकता था;मगर रण-क्षेत्र में जानेवाला रथ भी तो बिना तेल के नहीं चल सकता। उनके जीवन में थोड़ी-सी रसिकता लाजिमी थी। बोले--आप संन्यासी बन सकते हैं,मैं तो नहीं बन सकता। मैं तो समझता हूँ,जो भोगी नहीं है,वह सग्राम में भी पूरे उत्साह से नही जा सकता। जो रमणी से प्रेम नहीं कर सकता,उसके देश-प्रेम में मुझे विश्वास नहीं।

राय साहब मुसकराये--आप मुझी पर आवाजें कसने लगे।

'आवाज़ नही है,तत्त्व की बात है।'

'शायद हो।'

'आप अपने दिल के अन्दर पैठकर देखिए तो पता चले।'

'मैंने तो पैठकर देखा है,और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ,वहाँ और चाहे जितनी बुराइयाँ हों,विषय की लालसा नहीं है।'

'तब मुझे आपके ऊपर दया आती है। आप जो इतने दुखी और निराश और चिन्तित हैं,इसका एकमात्र कारण आपका निग्रह है। मैं तो यह नाटक खेलकर रहूँगा,चाहे दुःखान्त ही क्यों न हो! वह मुझसे मज़ाक करती है,दिखाती है कि मुझे तेरी परवाह नहीं है;लेकिन मैं हिम्मत हारनेवाला मनुष्य नहीं हूँ। मैं अब तक उसका मिज़ाज़ नहीं समझ पाया। कहाँ निशाना ठीक बैठेगा,इसका निश्चय न कर सका।'

'लेकिन वह कुंजी आपको शायद ही मिले। मेहता शायद आपसे बाजी मार ले जायँ।'

{{Gap]}एक हिरन कई हिरनियों के साथ चर रहा था, बड़े सींगोंवाला,बिलकुल काला। राय साहब ने निशाना बाँधा। खन्ना ने रोका--क्यों हत्या करते हो यार? बेचारा चर रहा है,चरने दो। धूप तेज हो गयी है,आइए कहीं बैठ जायें।आप से कुछ बातें करनी हैं।

राय साहब ने बन्दूक चलायी;मगर हिरन भाग गया। बोले--एक शिकार मिला भी तो निशाना खाली गया।

'एक हत्या से बचे।'

'आपके इलाके़ में ऊख होती है?'

'बड़ी कसरत से।'

'तो फिर क्यों न हमारे शुगर मिल में शामिल हो जाइए। हिस्से धड़ाधड़ बिक रहे हैं। आप ज्यादा नहीं एक हजार हिस्से खरीद लें?'

'ग़ज़ब किया,मैं इतने रुपए कहाँ से लाऊँगा?'

'इतने नामी इलाकेदार और आपको रुपयों की कमी! कुल पचास हज़ार ही तो होते हैं। उनमें भी अभी २५ फीसदी ही देना है।'