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गोदान
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पायेगा।एक ही घाघ हो।अच्छा बताओ,मेरे विषय में तुम्हारा क्या खयाल है?

मेहता ने नटखटपन से मुस्कराकर कहा--तुम सब कुछ कर सकती हो,बुद्धिमती हो,चतुर हो,प्रतिभावान् हो,दयालु हो,चंचल हो,स्वाभिमानिनी हो,त्याग कर सकती हो;लेकिन प्रेम नहीं कर सकती।

मालती ने पैनी दृष्टि से ताककर कहा--झूठे हो तुम, बिलकुल झूठे। मुझे तुम्हारा यह दावा निस्सार मालूम होता है कि तुम नारी-हृदय तक पहुंँच जाते हो।

दोनों नाले के किनारे-किनारे चले जा रहे थे। बारह बज चुके थे;पर अब मालती को न विश्राम की इच्छा थी,न लौटने की। आज के सम्भाषण में उसे एक ऐसा आनन्द आ रहा था,जो उसके लिए विलकुल नया था। उसने कितने ही विद्वानों और नेताओं को एक मुस्कान में,एक चितवन में,एक रसीले वाक्य में उल्लू बनाकर छोड़ दिया था। ऐसी बालू की दीवार पर वह जीवन का आधार नहीं रख सकती थी। आज उसे वह कठोर,ठोस,पत्थर-सी भूमि मिल गयी थी,जो फावड़ों से चिनगारियाँ निकाल रही थी और उसकी कठोरता उसे उत्तरोत्तर मोह लेती थी।

धायँ की आवाज़ हुई। एक लालसर नाले पर उड़ा जा रहा था। मेहता ने निशाना मारा। चिड़िया चोट खाकर भी कुछ दूर उड़ी,फिर बीच धार में गिर पड़ी और लहरों के साथ बहने लगी।

'अब?'

'अभी जाकर लाता हूँ। जाती कहाँ है।'

यह कहने के साथ वह रेत में दौड़े और बन्दूक किनारे पर रख गड़ाप से पानी में कूद पड़े और बहाव की ओर तैरने लगे;मगर आध मील तक पूरा जोर लगाने पर भी चिड़िया न पा सके। चिड़िया मर कर भी जैसे उड़ी जा रही थी।

सहसा उन्होंने देखा,एक युवती किनारे की एक झोपड़ी में निकली,चिड़िया को बहते देखकर साड़ी को जाँघों तक चढ़ाया और पानी में घुस पड़ी। एक क्षण में उसने चिड़िया पकड़ ली और मेहता को दिखाती हुई बोली--पानी से निकल जाओ बाबूजी,तुम्हारी चिड़िया यह है। मेहता युवती की चपलता और साहस देखकर मुग्ध हो गये। तुरन्त किनारे की ओर हाथ चलाये और दो मिनट में युवती के पास जा खड़े हुए।

युवती का रंग था तो काला और वह भी गहरा,कपड़े बहुत ही मैले और फूहड़,आभूपण के नाम पर केवल हाथों में दो-दो मोटी चूड़ियाँ,सिर के बाल उलझे,अलग-अलग। मुख-मंडल का कोई भाग ऐसा नहीं,जिसे सुन्दर या सुघड़ कहा जा सके;लेकिन उस स्वच्छ,निर्मल जलवायु ने उसके कालेपन में ऐसा लावण्य भर दिया था और प्रकृति की गोद में पलकर उसके अंग इतने सुडौल,सुगठित और स्वच्छन्द हो गये थे कि यौवन का दिन खींचने के लिए उससे सुन्दर कोई रूप न मिलता। उसका सबल स्वास्थ्य जैसे मेहता के मन में बल और तेज भर रहा था।

मेहता ने उसे धन्यवाद देते हुए कहा--तुम बड़े मौके से पहुंच गयीं,नहीं मुझे न जाने कितनी दूर तैरना पड़ता।