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गोदान
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'जब आप लोग मेरा अपमान देख सकते हैं, तो अपने घर की स्त्रियों का अपमान भी देख सकते होंगे?'

'तो आप भी पैसे के लिए अपने घर के पुरुषों को होम करने में संकोच न करेंगी।'

खान इतनी देर तक झल्लाया हुआ-सा इन लोगों की गिटपिट सुन रहा था। एकाएक गरजकर बोला––अम अब नयीं मानेगा। अम इतनी देर यहाँ खड़ा है, तुम लोग कोई जवाब नयीं देता। (जेब से सीटी निकालकर) अम तुमको एक लमहा और देता है; अगर तुम रुपया नहीं देता तो अम सीटी बजायेगा और अमारा पचीस जवान यहाँ आ जायगा। बस!

फिर आँखों में प्रेम की ज्वाला भरकर उसने मिस मालती को देखा।

'तुम अमारे साथ चलेगा दिलदार! अम तुम्हारे ऊपर फिदा हो जायगा। अपना जान तुम्हारे क़दमों पर रख देगा। इतना आदमी तुम्हारा आशिक़ है; मगर कोई सच्चा आशिक़ नहीं है। सच्चा इश्क़ क्या है, अम दिखा देगा। तुम्हारा इशारा पाते ही अम अपने सीने में खंजर चुवा सकता है।'

मिर्ज़ा ने घिघियाकर कहा––देवीजी, खुदा के लिए इस मूज़ी को रुपए दे दीजिए।

खन्ना ने हाथ जोड़कर याचना की––हमारे ऊपर दया करो मिस मालती!

राय साहब तनकर बोले––हर्गिज़ नहीं। आज जो कुछ होना है, हो जाने दीजिए। या तो हम खुद मर जायंगे या इन जालिमों को हमेशा के लिए सबक़ दे देंगे।

तंखा ने राय साहब को डाँट बतायी––शेर की माँद में घुसना कोई बहादुरी नहीं है। मैं इसे मूर्खता समझता हूँ।

मगर मिस मालती के मनोभाव कुछ और ही थे। खान के लालसाप्रदीप्त नेत्रों ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था और अब इस काण्ड में उन्हें मनचलेपन का आनन्द आ रहा था। उनका हृदय कुछ देर इन नरपुंगवों के बीच में रहकर उनके बर्बर प्रेम का आनन्द उठाने के लिए ललचा रहा था। शिष्ट प्रेम की दुर्बलता और निर्जीवता का उन्हें अनुभव हो चुका था। आज अक्खड़, अनघड़ पठानों के उन्मत्त प्रेम के लिए उनका मन दौड़ रहा था, जैसे संगीत का आनन्द उठाने के बाद कोई मस्त हाथियों की लड़ाई देखने के लिए दौड़े।

उन्होंने खाँ साहब के सामने आकर निश्शंक भाव से कहा––तुम्हें रुपए नहीं मिलेंगे।

खान ने हाथ बढ़ाकर कहा––तो अम तुमको लूट ले जायगा।

'तुम इतने आदमियों के बीच से हमें नहीं ले जा सकता।'

'अम तुमको एक हजार आदमियों के बीच से ले जा सकता है।'

'तुमको जान से हाथ धोना पड़ेगा।'

'अम अपने माशूक के लिए अपने जिस्म का एक-एक बोटी नुचवा सकता है।'

उसने मालती का हाथ पकड़कर खींचा। उसी वक्त होरी ने कमरे में क़दम रखा। वह राजा जनक का माली बना हुआ था और उसके अभिनय ने देहातियों को हँसाते-हँसाते लोटा दिया था। उसने सोचा मालिक अभी तक क्यों नहीं आये। वह भी तो