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गोदान
 

मिर्जा़ ने लपककर उन्हें गले लगा लिया।

चारों तरफ़ से आवाजें आने लगीं--कमाल है,मानता हूँ उस्ताद,क्यों न हो,फ़िलासफ़र ही जो ठहरे!

मिर्जा़ ने नोटों को आँखों से लगाकर कहा--भई मेहता,आज से मैं तुम्हारा शागिर्द हो गया। बताओ,क्या जादू मारा?

मेहता अकड़कर, लाल-लाल आँखों से ताकते हुए बोले--अजी कुछ नहीं। ऐसा कौन-सा बड़ा काम था। जाकर पूछा,अन्दर आऊँ? बोलीं--आप हैं मेहताजी,आइए!मैंने अन्दर जाकर कहा,वहाँ लोग ब्रिज खेल रहे हैं। अंगूठी एक हजार से कम की नहीं है। आपने तो देखा है। बस वही। आपके पास रुपए हों,तो पाँच सौ रुपए देकर एक हजा़र की चीज़ ले लीजिए। ऐसा मौक़ा फिर न मिलेगा। मिस मालती ने इस वक्त रुपए न दिये, तो बेदाग निकल जायँगी। पीछे से कौन देता है, शायद इसीलिए उन्होंने अंगूठी निकाली है कि पाँच सौ रुपए किसके पास धरे होंगे। मुसकराई और चट अपने वटुवे से पाँच नोट निकालकर दे दिये,और बोलीं--मैं बिना कुछ लिये घर से नहीं निकलती। न जाने कब क्या जरूरत पड़े।

खन्ना खिसियाकर बोले--जब हमारे प्रोफेसरों का यह हाल है, तो यूनिवर्सिटी का ईश्वर ही मालिक है।खुर्शद ने घाव पर नमक छिड़का--अरे तो ऐसी कौन-सी बड़ी रकम है, जिसके लिए आपका दिल बैठा जाता है। खुदा झूठ न बुलवाये तो यह आपकी एक दिन की आमदनी है। समझ लीजिएगा,एक दिन बीमार पड़ गये और जायगा भी तो मिस मालती ही के हाथ में। आपके दर्दजिगर की दवा मिस मालती ही के पास तो है।

मालती ने ठोकर मारी--देखिए मिर्जा़जी तबेले में लतिआहुज अच्छी नहीं। मिर्जा़ ने दुम हिलायी--कान पकड़ता हूँ देवीजी।

मिस्टर तंखा की तलाशी हुई। मुश्किल से दस रुपए निकले, मेहता की जेब से केवल अठन्नी निकली। कई सज्जनों ने एक-एक,दो-दो रुपए खुद दे दिये। हिसाब जोड़ा गया,तो तीन सौ की कमी थी। यह कमी राय साहब ने उदारता के साथ पूरी कर दी।

सम्पादकजी ने मेवे और फल खाये थे और ज़रा कमर सीधी कर रहे थे कि राय साहब ने जाकर कहा--आपको मिस मालती याद कर रही हैं।

{{Gap}]खुश होकर बोले--मिस मालती मुझे याद कर रही हैं, धन्य-भाग! राय साहब के साथ ही हा़ल में आ विराजे।

उधर नौकरों ने मेजें साफ़ कर दी थीं। मालती ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया।

सम्पादकजी ने नम्रता दिखायी--बैठिए, तकल्लुफ़ न कीजिए। मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूँ।

मालती ने श्रद्धा भरे स्वर में कहा--आप तकल्लुफ़ समझते होंगे,मैं समझती हूँ,मैं अपना सम्मान बढ़ा रही हूँ;यों आप अपने को कुछ न समझें और आपको शोभा भी नहीं देता है,लेकिन यहाँ जितने सज्जन जमा है,सभी आपकी राष्ट्र और साहित्य-सेवा से