बुद्धि के बगैर किसी समाज का संचालन नहीं हो सकता। हम केवल इस बिच्छू का डंक तोड़ देना चाहते हैं।
दूसरी मोटर आ पहुँची और मिस्टर खन्ना उतरे, जो एक बैंक के मैनेजर और शक्करमिल के मैनेजिंग डाइरेक्टर हैं। दो देवियाँ भी उनके साथ थीं। राय साहब ने दोनों देवियों को उतारा। वह जो खद्दर की साड़ी पहने बहुत गंभीर और विचारशील-सी हैं, मिस्टर खन्ना की पत्नी,कामिनी खन्ना है। दूसरी महिला जो ऊँची एड़ी का जूता पहने हुए हैं और जिनकी मुख-छवि पर हँसी फूटी पड़ती है,मिस मालती हैं। आप इंगलैंड से डाक्टरी पढ़ आयी हैं और अब प्रैक्टिस करती हैं। ताल्लुकेदारों के महलों में उनका बहुत प्रवेश है। आप नवयुग की साक्षात् प्रतिमा है। गात कोमल,पर चपलता कूट-कट कर भरी हुई। झिझक या संकोच का कहीं नाम नहीं,मेक-अप में प्रवीण,बला की हाजिर-जवाब,पुरुष-मनोविज्ञान की अच्छी जानकार,आमोद-प्रमोद को जीवन का तत्व समझनेवाली,लुभाने और रिझाने की कला में निपुण। जहाँ आत्मा का स्थान है,वहाँ प्रदर्शन;जहाँ हृदय का स्थान है,वहाँ हाव-भाव;मनोद्गारों पर कठोर निग्रह,जिसमें इच्छा या अभिलापा का लोप-सा हो गया।
आपने मिस्टर मेहता से हाथ मिलाते हुए कहा-सच कहती हूँ,आप सूरत से ही फिलासफर मालूम होते हैं। इस नयी रचना में तो आपने आत्मवादियों को उधेड़कर रख दिया। पढ़ते-पढ़ते कई बार मेरे जी में ऐसा आया कि आपसे लड़ जाऊँ। फ़िलासफ़रों में सहृदयता क्यों गायब हो जाती है?
मेहता झेंप गये। बिना-ब्याहे थे और नवयुग की रमणियों से पनाह माँगते थे। पुरुषों की मंडली में खूब चहकते थे;मगर ज्योंही कोई महिला आयी और आपकी ज़बान बन्द हुई। जैसे बुद्धि पर ताला लग जाता था। स्त्रियों से शिष्ट व्यवहार तक करने की सुधि न रहती थी।
मिस्टर खन्ना ने पूछा-फ़िलासफ़रों की सूरत में क्या खास बात होती है देवीजी?
मालती ने मेहता की ओर दया-भाव से देखकर कहा-मिस्टर मेहता बुरा न मानें,तो बतला दूं।
खन्ना मिस मालती के उपासकों में थे। जहाँ मिस मालती जाय,वहाँ खन्ना का पहुँचना लाज़िम था। उनके आस-पास भौंरे की तरह मॅडराते रहते थे। हर समय उनकी यही इच्छा रहती थी कि मालती से अधिक-से-अधिक वही बोलें,उनकी निगाह अधिकसे-अधिक उन्हीं पर रहे।
खन्ना ने आँख मारकर कहा--फ़िलासफ़र किसी की बात का बुरा नहीं मानते। उनकी यही सिफ़त है।
'तो सुनिए,फ़िलासफ़र हमेशा मुर्दा-दिल होते है,जब देखिए,अपने विचारों में मगन बैठे हैं। आपकी तरफ़ ताकेंगे,मगर आपको देखेंगे नहीं;आप उनसे बातें किय जायें,कुछ सुनेंगे नहीं। जैसे शून्य में उड़ रहे हों।'