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गोदान
 

उसने कलेऊ की टोकरी वहीं छोड़ दी और घर की ओर चली। हीरा गरजा-वहाँ कहाँ जाती है,चल कुएँ पर,नहीं खून पी जाऊँगा।

पुनिया के पाँव रुक गये। इस नाटक का दूसरा अंक न खेलना चाहती थी। चुपके से टोकरी उठाकर रोती हुई कुएँ की ओर चली। हीरा भी पीछे-पीछे चला।

होरी ने कहा-अब फिर मार-धाड़ न करना। इससे औरत बेसरम हो जाती है।

धनिया ने द्वार पर आकर हाँक लगायी--तुम वहाँ खड़े-खड़े क्या तमासा देख रहे हो। कोई तुम्हारी मुनता भी है कि यों ही शिक्षा दे रहो हो। उस दिन इसी बहू ने तुम्हें चूंघट की आड़ में डाढ़ीजार कहा था,भूल गये। बहुरिया होकर पराये मरदों से लड़ेगी,तो डांटी न जायेगी।

होरी द्वार पर आकर नटखटपन के साथ बोला--और जो मै इसी तरह तुझे मारूँ ?

'क्या कभी मारा नहीं है,जो मारने की साध बनी हुई है?'

'इतनी बेदरदी से मारता, तो तू घर छोड़कर भाग जाती ! पुनिया बड़ी गमखोर है।'

'ओहो! ऐसे ही तो बड़े दरदवाले हो। अभी तक मार का दाग बना हुआ है। हीरा मारता है तो दुलारता भी है। तुमने खाली मारना सीखा,दुलार करना सीखा ही नहीं। मै ही ऐसी हूँ कि तुम्हारे साथ निबाह हुआ।'

'अच्छा रहने दे, बहुत अपना वखान न कर! तू ही रूठ-रूठकर नैहर भागती थी। जब महीनों खुशामद करता था, तब जाकर आती थी!'

'जब अपनी गरज सताती थी, तब मनाने जाते थे लाला! मेरे दुलार से नहीं जाते थे।'

'इसी से तो मैं सबसे तेरा बखान करता हूँ।'

वैवाहिक जीवन के प्रभात में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याह्न का प्रखर ताप आता है,क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं, और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है। उसके बाद विश्राममय संध्या आती है,शीतल और शान्त,जब हम थके हुए पथिकों की भांति दिन-भर की यात्रा का वृत्तान्त कहते और सुनते हैं तटस्थ भाव से,मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं जहाँ नीचे का जन-रव हम तक नहीं पहुँचता।

धनिया ने आँखों में रस भरकर कहा--चलो-चलो, बड़े बखान करनेवाले। जरा-सा कोई काम बिगड़ जाय,तो गरदन पर सवार हो जाते हो।

होरी ने मीठे उलाहने के साथ कहा-ले,अब यही तेरी बेइन्साफी मुझे अच्छी नहीं लगती धनिया! भोला से पूछ,मैंने उनसे तेरे बारे में क्या कहा था?

धनिया ने बात बदलकर कहा--देखो,गोबर गाय लेकर आता है कि खाली हाथ।

चौधरी ने पसीने में लथ-पथ आकर कहा-महतो, चलकर बाँस गिन लो। कल ठेला लाकर उठा ले जाऊँगा।