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गोदान ३४३

एक दिन मेहता के सिर में जोर का दर्द हो रहा था। वह आँखें बंद किये चारपाई पड़े तड़प रहे थे कि मालती ने आकर उनके सिर पर हाथ रखकर पूछा--कब से यह दर्द हो रहा है?

मेहता को ऐसा जान पड़ा, उन कोमल हाथों ने जैसे सारा दर्द खींच लिया। उठकर बैठ गये और बोले--दर्द तो दोपहर से ही हो रहा था और ऐसा सिर-दर्द मुझे रज तक नहीं हुआ था, मगर तुम्हारे हाथ रखते ही सिर ऐसा हल्का हो गया है, तो दर्द था ही नहीं। तुम्हारे हाथों में यह सिद्धि है।

मालती ने उन्हें कोई दवा लाकर खाने को दे दी और आराम से लेट रहने की कोद करके तुरन्त कमरे से निकल जाने को हुई।

मेहता ने आग्रह करके कहा--ज़रा दो मिनट बैठोगी नहीं ?

मालती ने द्वार पर से पीछे फिरकर कहा--इस वक्त बातें करोगे तो शायद फिर द होने लगे। आराम से लेटे रहो। आज-कल मैं तुम्हें हमेशा कुछ-न-कुछ पढ़ने या लखते देखती हूँ। दो-चार दिन पढ़ना-लिखना छोड़ दो।

'तुम एक मिनट बैठोगी नहीं ?'

'मुझे एक मरीज़ को देखने जाना है।'

'अच्छी बात है, जाओ।'

मेहता के मुख पर कुछ ऐसी उदासी छा गयी कि मालती लौट पड़ी और सामने कर बोली--अच्छा कहो, क्या कहते हो?

मेहता ने विमन होकर कहा--कोई खा़स बात नहीं है। यही कह रहा था कि नी रात गये किस मरीज़ को देखने जाओगी?

'वही राय साहब की लड़की है। उसकी हालत बहुत खराब हो गयी थी। अब भल गयी है।'

उसके जाते ही मेहता फिर लेट रहे। कुछ समझ में नहीं आया कि मालती के रखते ही दर्द क्यों शान्त हो गया। अवश्य ही उसमें कोई सिद्धि है और यह - की तपस्या का, उसकी कर्मण्य मानवता का ही वरदान है। मालती नारीत्व के उम ॐच आदर्श पर पहुँच गयी थी, जहाँ वह प्रकाश के एक नक्षत्र-सी नज़र आती थी। अब वह प्रेम की वस्तु नहीं, श्रद्धा की वस्तु थी। अब वह दुर्लभ हो गयी थी और दुर्लभता मनस्वी आत्माओं के लिए उद्योग का मंत्र है। मेहता प्रेम में जिस सुख की कल्पना कर रहे थे, उमे श्रद्धा ने और भी गहरा, और भी स्फूर्तिमय बना दिया। प्रेम में कुछ मान भी होता है, कुछ महत्त्व भी। श्रद्धा तो अपने को मिटा डालती है और अपने मिट जाने को ही अपना इष्ट बना लेती है। प्रेम अधिकार कराना चाहता है, जो कुछ देता है, उसके बदले में कुछ चाहता भी है। श्रद्धा का चरम आनन्द अपना समर्पण है, जिसमें अहम्मन्यता का ध्वंस हो जाता है।

मेहता का वह बृहत् ग्रन्थ समाप्त हो गया था, जिसे वह तीन साल से लिख रहे थे और जिसमें उन्होंने संसार के सभी दर्शन-तत्त्वों का समन्वय किया था। यह ग्रन्थ