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गोदान
 


में यह सोचते हुए कि कहीं इसे गोरस मिलता,तो कैसा पट्ठा हो जाता,बोला-नहीं,अभी नहीं गाड़ी। सोचा,कहीं न मिले,तो नाहक भद्द हो।

गोवर ने त्योरी चढ़ाकर कहा--मिलेगी क्यों नहीं?

'उनके मन में कोई चोर पैठ जाय?चोर पैठे या डाकू,गाय तो उन्हें देनी ही पड़ेगी।'

गोबर ने और कुछ न कहा। लाठी कन्धे पर रखी और चल दिया। होरी उसे जाते देखता हुआ अपना कलेजा ठंढा करता रहा। अब लड़के की सगाई में देर न करनी चाहिए। सत्रहवां लग गया;मगर करें कैसे? कहीं पैसे के भी दरसन हों। जब से तीनों भाइयों में अलगौझा हो गया,घर की साख जाती रही। महतो लड़का देखने आते हैं,पर घर की दशा देखकर मुंह फीका करके चले जाते हैं। दो-एक राजी भी हुए,तो रुपए मांगते है। दो-तीन सौ लड़की का दाम चकाये और इतना ही ऊपर से खर्च करे, तब जाकर व्याह हो। कहाँ से आवें इतने रुपए। रास खलिहान में तुल जाती है। खाने-भर को भी नहीं बचता। व्याह कहाँ से हो? और अब तो सोना व्याहने योग्य हो गयी। लड़के का व्याह न हुआ, न सही। लड़की का व्याह न हुआ,तो सारी बिरादरी में हँसी होगी। पहले तो उसी की सगाई करनी है, पीछे देखी जायगी।

एक आदमी ने आकर राम-राम किया और पूछा--तुम्हारी कोठी में कुछ बाँस होंगे महतो?

होरी ने देखा,दमड़ी बॅसार सामने खड़ा है,नाटा, काला,खूब मोटा,चौड़ा मुँह,बड़ीबड़ी मूंछे,लाल आँखें,कमर में बाँस काटने की कटार खोंसे हुए। साल में एक-दो वार आकर चिकें,कुरसियाँ,मोढ़े,टोकरियाँ आदि बनाने के लिए कुछ बाँस काट ले जाता था।

होरी प्रसन्न हो गया। मुट्ठी गर्म होने की कुछ आशा बॅधी। चौधरी को ले जाकर अपनी तीनों कोठियाँ दिखायीं,मोल-भाव किया और पच्चीस रुपए सैकड़े में पचास वाँसों का बयाना ले लिया। फिर दोनों लौटे। होरी ने उसे चिलम पिलायी,जलपान कराया और तब रहस्यमय भाव से बोला-मेरे बाँस कभी तीस रुपए से कम में नहीं जाते;लेकिन तुम घर के आदमी हो, तुमसे क्या मोल-भाव करता। तुम्हारा वह लड़का,जिसकी सगाई हुई थी,अभी परदेस से लौटा कि नहीं?

चौधरी ने चिलम का दम लगाकर खाँसते हुए कहा-उस लौंडे के पीछे तो मर मिटा महतो!जवान बहू घर में बैठी थी और वह बिरादरी की एक दूसरी औरत के साथ परदेस में मौज करने चल दिया। बहू भी दूसरे के साथ निकल गयी। बड़ी नाकिस जात है महतो, किसी की नहीं होती। कितना समझाया कि तू जो चाहे खा,जो चाहे पहन,मेरी नाक न कटवा,मुदा कौन सुनता है। औरत को भगवान सब कुछ दे,रूप न दे,नहीं वह काबू में नहीं रहती। कोठियाँ तो बँट गयी होंगी?

होरी ने आकाश की ओर देखा और मानो उसकी महानता में उड़ता हुआ बोलासब कुछ बँट गया चौधरी!जिनको लड़कों की तरह पाला-पोसा,वह अब बराबर के हिस्सेदार है; लेकिन भाई का हिस्सा खाने की अपनी नीयत नहीं है। इधर तुमसे रुपए