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गोदान ३३७

भय से बाँधकर रखी जा सकती है? वह तो पूरा विश्वास चाहती है, पूरी स्वाधीनता चाहती है, पूरी ज़िम्मेदारी चाहती है। उसके पल्लवित होने की शक्ति उसके अन्दर है। उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिए। वह कोई दीवार नहीं है, जिस पर ऊपर से ईंटें रखी जाती हैं। उसमें तो प्राण है, फैलने की असीम शक्ति है।

जब से मेहता इस बँगले में आये हैं, उन्हें मालती से दिन में कई बार मिलने का अवसर मिलता है। उनके मित्र समझते हैं, यह उनके विवाह की तैयारी है। केवल रस्म अदा करने की देर है। मेहता भी यही स्वप्न देखते रहते हैं। अगर मालती ने उन्हें सदा के लिए ठुकरा दिया होता, तो क्यों उन पर इतना स्नेह रखती। शायद वह उन्हें सोचने का अवसर दे रही है, और वह खूब सोचकर इसी निश्चय पर पहुंँचे हैं कि मालती के बिना वह आधे हैं। वही उन्हें पूर्णता की ओर ले जा सकती है। बाहर से वह विलासिनी है, भीतर से वही मनोवृत्ति शक्ति का केन्द्र है; मगर परिस्थिति बदल गयी है। तव मालती प्यासी थी, अव मेहता प्यास से विकल हैं। और एक बार जवाब पा जाने के बाद उन्हें उम प्रश्न पर मालती से कुछ कहने का साहस नहीं होता, यद्यपि उनके मन में अब संदेह का लेश नहीं रहा। मालती को ममीप से देखकर उनका आकर्षण बढ़ता ही जाता है, दूर से पुस्तक के जो अक्षर लिपे-पुते लगते थे, समीप मे वह स्पष्ट हो गये हैं, उनमें अर्थ है, सन्देश है।

इधर मालती ने अपने बाग़ के लिए गोबर को माली रख लिया था। एक दिन वह किसी मरीज़ को देखकर आ रही थी कि रास्ते में पेट्रोल न रहा। वह खुद ड्राइव कर रही थी। फिक्र हुई पेट्रोल कैसे आये? रात के नौ बज गये थे और माघ का जाड़ा पड़ रहा था। सड़कों पर सन्नाटा हो गया था। कोई ऐसा आदमी नज़र न आता था, जो कार को ढकेल कर पेट्रोल की दूकान तक ले जाय। बार-बार नौकर पर झुंँझला रही थी। हरामखोर कहीं का। बेखबर पड़ा रहता है।

संयोग से गोबर उधर से आ निकला। मालती को खड़े देखकर उसने हालत समझ ली और गाड़ी को दो फर्लाग ठेल कर पेट्रोल की दूकान तक लाया।

मालती ने प्रसन्न होकर पूछा--नौकरी करोगे?

गोबर ने धन्यवाद के साथ स्वीकार किया। पन्द्रह रुपए वेतन तय हुआ। माली का काम उसे पसन्द था। यही काम उसने किया था और उसमें मजा हुआ था। मिल की मजूरी में वेतन ज्यादा मिलता था: पर उस काम से उसे उलझन होती थी।

दूसरे दिन से गोबर ने मालती के यहाँ काम करना शुरू कर दिया। उसे रहने को एक कोठरी भी मिल गयी। झुनिया भी आ गयी। मालती बाग़ में आती तो उसे झुनिया का बालक धूल-मिट्टी में खेलता मिलता। एक दिन मालती ने उसे एक मिठाई दे दी। बच्चा उस दिन से परच गया। उसे देखते ही उसके पीछे लग जाता और जब तक मिठाई न लेता, उसका पीछा न छोड़ता।

एक दिन मालती बाग़ में आयी तो बालक न दिखायी दिया। झुनिया से पूछा तो मालूम हुआ बच्चे को ज्वर आ गया है।