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३३४ गोदान

मालती को अचरज हुआ--तुम एक हजार से ज्यादा कमाते हो, और तुम्हारे पास अपने कपड़े बनवाने को भी पैसे नहीं? मेरी आमदनी कभी चार सौ से ज्यादा न थी; लेकिन मैं उसी में सारी गृहस्थी चलाती हूँ और कुछ बचा लेती हूँ। आखिर तुम क्या करते हो?

'मैं एक पैसा भी फालतू नहीं खर्च करता। मुझे कोई ऐसा शौक़ भी नहीं है।'

'अच्छा, मुझसे रुपए ले जाओ और एक जोड़ी अचकन बनवा लो।'

मेहता ने लज्जित होकर कहा--अबकी बनवा लूंँगा। सच कहता हूँ।

'अब आप यहाँ आयें तो आदमी बनकर आयें।'

'यह तो बड़ी कड़ी शर्त है।'

'कड़ी सही। तुम-जैसों के साथ बिना कड़ाई किये काम नहीं चलता।'

मगर वहाँ तो सन्दूक खाली था और किसी दूकान पर बे पैसे जाने का साहस न पड़ता था! मालती के घर जायें तो कौन मुँह लेकर? दिल में तड़प-तड़प कर रह जाते थे। एक दिन नयी विपत्ति आ पड़ी। इधर कई महीने से मकान का किराया नहीं दिया था। पचहत्तर रुपए माहवार वढ़ते जाते थे। मकानदार ने जब बहुत तक़ाज़े करने पर भी रुपए वसूल न कर पाये, तो नोटिम दे दी; मगर नोटिस रुपये गढ़ने का कोई जन्तर तो है नहीं। नोटिस की तारीख निकल गयी और रुपए न पहुँचे। तब मकानदार ने मजबूर होकर नालिश कर दी। वह जानता था, मेहताजी बड़े सज्जन और परोपकारी पुरुष हैं; लेकिन इससे ज्यादा भलमनमी वह क्या करता कि छ: महीने बैठा रहा। मेहता ने किसी तरह की पैरवी न की, एकतरफ़ा डिग्री हो गयी, मकानदार ने तुरत डिग्री जारी करायी और कुर्क अमीन मेहता साहब के पास पूर्व सूचना देने आया; क्योंकि उसका लड़का यूनिवर्सिटी में पढ़ता था और उसे मेहता कुछ वजीफ़ा भी देते थे। संयोग से उस वक्त मालती भी बैठी थी।

बोली--कैसी कुकी है ? किस बात की?

अमीन ने कहा--वही किराये कि डिग्री जो हुई थी। मैने कहा, हुजूर को इत्तला दे दूंँ। चार-पाँच सौ का मामला है, कौन-सी बड़ी रकम है। दस दिन में भी रुपए दे दीजिए, तो कोई हरज नहीं। मैं महाजन को दस दिन तक उलझाए रहूँगा।

जब अमीन चला गया तो मालती ने तिरस्कार-भरे स्वर में पूछा--अब यहाँ तक नौबत पहुँच गई ! मुझे आशचय होता है कि तुम इतने मोटे-मोटे ग्रन्थ कैमे लिखते हो। मकान का किराया छ:-छ: महीने से बाकी पड़ा है और तुम्हें खबर नहीं।

मेहता लज्जा मे सिर झुकाकर बोले--खबर क्यों नहीं है। लेकिन रुपए बचते ही नहीं। मैं एक पैसा भी व्यर्थ नहीं खर्च करता।

'कोई हिसाब-किताब भी लिखते हो?'

'हिसाब क्यों नहीं रखता। जो कुछ पाता हूँ, वह सब दर्ज करता जाता हूँ, नहीं इनकमटैक्सवाले जिन्दा न छोड़ें।'

'और जो कुछ खर्च करते हो वह ?'