३२४ | गोदान |
मालती को आपने जाना नहीं, और न जानने की परवा की। मैंने भी यही समझा था; लेकिन अब मालूम हुआ कि वह आग में पड़कर चमकनेवाली सच्ची धातु है। वह उन वीरों में है जो अवसर पड़ने पर अपने जौहर दिखाते हैं, तलवार घुमाते नहीं चलते। आपको मालूम है खन्ना की आजकल क्या दशा है ?
राय साहब ने सहानुभूति के भाव से सिर हिलाकर कहा--मुन चुका हूँ, और बार-बार इच्छा हुई कि उनसे मिलूँ; लेकिन फुरसत न मिली। उस मिल में आग लगना उनके सर्वनाश का कारण हो गया।
'जी हाँ। अब वह एक तरह से दोस्तों की दया पर अपना निर्वाह कर रहे है। उस पर गोविन्दी महीनों से बीमार है। उसने खन्ना पर अपने को बलिदान कर दिया, उस पग पर जिसने हमेशा उसे जलाया; अब वह मर रही है। और मालती रात की रात उसके सिरहाने बैठी रह जाती है, वही मालती जो किसी राजा रईस से पाँच सौ फ़ीस पाकर भी रात-भर न बैठेगी। खन्ना के छोटे बच्चों को पालने का भार भी मालती पर है। यह मातृत्व उसमें कहाँ सोया हुआ था, मालूम नहीं। मुझे तो मालती का यह स्वरूप देखकर अपने भीतर श्रद्धा का अनुभव होने लगा, हालाँकि आप जानते हैं, मैं घोर जड़वादी हूँ। और भीतर के परिष्कार के साथ उसकी छवि में भी देवत्व की झलक आने लगी है। मानवता इतनी बहुरंगी और इतनी समर्थ है, इसका मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है। आप उनसे मिलना चाहें तो चलिए, इसी बहाने मैं भी चला चलूँगा।'
राय साहब ने सन्दिग्ध भाव से कहा--जब आप ही मेरे दर्द को नहीं समझ सके, तो मालती देवी क्या समझेंगी, मुफ्त में शर्मिन्दगी होगी; मगर आपको पास जाने के लिए किसी बहाने की ज़रूरत क्यों ? मैं तो समझता था, आपने उनके ऊपर अपना जादू डाल दिया है।
मेहता ने हसरत भरी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया--वह बात अब स्वप्न हो गयी। अब तो कभी उनके दर्शन भी नहीं होते। उन्हें अब फुरसत भी नहीं रहती। दो-चार बार गया। मगर मुझे मालूम हुआ, मुझसे मिलकर वह कुछ खुश नहीं हुई, तब से जाते झेंपता हूंँ। हाँ, खूब याद आया, आज महिला-व्यायामशाला का जलसा है, आप चलेंगे?
राय साहब ने वेदिली के साथ कहा--जी नहीं, मुझे फुर्सत नहीं है। मुझे तो यह चिन्ता सवार है कि राजा साहब को क्या जवाब दूंँगा। मैं उन्हें वचन दे चुका हूँ।
यह कहते हुए वह उठ खड़े हुए और मन्दगति से द्वार की ओर चले। जिस गुत्थी को मुलझाने आये थे, वह और भी जटिल हो गयी। अन्धकार और भी असूझ हो गया। मेहता ने कार तक आकर उन्हें बिदा किया।
राय साहब सीधे अपने बंगले पर आये और दैनिक पत्र उठाया था कि मिस्टर तंखा का कार्ड मिला। तंखा से उन्हें घृणा थी, और उनका मुंँह भी न देखना चाहते थे; लेकिन इस वक्त मन की दुर्बल दशा में उन्हें किसी हमदर्द की तलाश थी, जो और कुछ न कर सके, पर उनके मनोभावों से सहानुभूति तो करे। तुरन्त बुला लिया।