गोदान | ३२३ |
मेहता ने सारा वृत्तान्त सुनकर उन्हें बनाना शुरू किया। गम्भीर मुंँह बनाकर बोले--यह तो आपकी प्रतिष्ठा का सवाल है।
राय साहब भाँप न सके। उछलकर बोले--जी हाँ, केवल प्रतिष्ठा का। राजा सूर्यप्रतापसिंह को तो आप जानते हैं ?
'मैंने उनकी लड़की को भी देखा है। सरोज उसके पाँव की धूल भी नहीं है।'
'मगर इस लौंडे की अक्ल पर पत्थर पड़ गया है।'
'तो मारिये गोली, आपको क्या करना है। वही पछतायेगा।'
'आह ! यही तो नहीं देखा जाता मेहताजी ? मिलती हुई प्रतिष्ठा नहीं छोड़ी जाती। मैं इस प्रतिष्ठा पर अपनी आधी रियासत कुर्बान करने को तैयार हूँ। आप मालती देवी को समझा दें, तो काम बन जाय। इधर से इनकार हो जाय, तो रुद्रपाल सिर पीटकर रह जायगा और यह नशा दस-पाँच दिन में आप उतर जायगा। यह प्रेम-प्रेम कुछ नहीं, केवल सनक है।'
'लेकिन मालती बिना कुछ रिश्वत लिए मानेगी नहीं।'
'आप जो कुछ कहिए, मैं उसे दूंँगा। वह चाहे तो मैं उसे यहाँ के डफ़रिन हास्पिटल का इनचार्ज बना दूंँ।'
'मान लीजिए, वह आपको चाहे तो आप राजी होंगे। जब से आपको मिनिस्ट्री मिली है, आपके विषय में उसकी राय ज़रूर बदल गयी होगी।'
राय साहब ने मेहता के चेहरे की तरफ़ देखा। उस पर मुस्कराहट की रेखा नज़र आयी। समझ गये। व्यथित स्वर में बोले--आपको भी मुझसे मज़ाक करने का यही अवसर मिला। मैं आपके पास इसलिए आया था कि मुझे यक़ीन था कि आप मेरी हालत पर विचार करेंगे, मुझे उचित राय देंगे। और आप मुझे बनाने लगे। जिसके दाँत नहीं दुखे, वह दाँतों का दर्द क्या जाने।
मेहता ने गम्भीर स्वर से कहा--क्षमा कीजिएगा, आप ऐसा प्रश्न ही लेकर आये हैं कि उस पर गम्भीर विचार करना मैं हास्यास्पद समझता हूँ। आप अपनी शादी के ज़िम्मेदार हो सकते हैं। लड़के की शादी का दायित्व आप क्यों अपने ऊपर लेते हैं, खास कर जब आपका लड़का बालिग़ है और अपना नफा-नुकसान समझता है। कम-से-कम मैं तो शादी-जैरो महत्त्व के मुआमले में प्रतिष्ठा का कोई स्थान नहीं समझता। प्रतिष्ठा धन से होती तो राजा साहब उस नंगे बाबा के सामने घण्टों गुलामों की तरह हाथ बाँधे न खड़े रहते। मालूम नहीं कहाँ तक सही है; पर राजा साहब अपने इलाके के दारोगा तक को सलाम करते हैं; इसे आप प्रतिष्ठा कहते हैं ? लखनऊ में आप किसी दूकानदार, किसी अहलकार, किसी राहगीर से पूछिए, उनका नाम सुनकर गालियाँ ही देगा। इसी को आप प्रतिष्ठा कहते हैं ? जाकर आराम से बैठिए। सरोज से अच्छी वधू आपको बड़ी मुश्किल से मिलेगी।
राय साहब ने आपत्ति के भाव से कहा--बहन तो मालती ही की है।
मेहता ने गर्म होकर कहा--मालती की बहन होना क्या अपमान की बात है ?