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गोदान ३०७

'तुमने उस पापी को लात क्यों नहीं मारी ? उसे दाँत क्यों नहीं काट लिया ? उसका खून क्यों नहीं पी लिया, चिल्लायी क्यों नहीं ?'

सिल्लो क्या जवाब दे !

सोना ने उन्मादिनी की भाँति अंगारे की-सी आँखें निकालकर कहा--बोलती क्यों नहीं ? क्यों तूने उसकी नाक दाँतों से नहीं काट ली ? क्यों नहीं दोनों हाथों से उसका गला दबा दिया। तब मैं तेरे चरणों पर सिर झुकाती। अब तो तुम मेरी आँखों में हरजाई हो, निरी बेसवा; अगर यही करना था, तो मातादीन का नाम क्यों कलंकित कर रही है; क्यों किसी को लेकर बैठ नहीं जाती; क्यों अपने घर नहीं चली गयी ? यही तो तेरे घरवाले चाहते थे। तू उपले और घास लेकर बाजार जाती, वहाँ से रुपए लाती और तेरा बाप बैठा, उसी रुपए की ताड़ी पीता, फिर क्यों उस ब्राह्मन का अपमान कराया ? क्यों उसकी आबरू में बट्टा लगाया ? क्यों सतवन्ती बनी बैठी हो? जब अकेले नहीं रहा जाता, तो किसी से मगाई क्यों नहीं कर लेती; क्यों नदी-तालाब में डूब नहीं मरती ? क्यों दूसरों के जीवन में विष घोलती है ? आज मैं तुझसे कह देती हूँ कि अगर इस तरह की वात फिर हुई और मुझे पता लगा, तो हम तीनों में से एक भी जीते न रहेंगे। बस, अब मुंँह में कालिख लगाकर जाओ। आज से मेरे और तुम्हारे बीच में कोई नाता नहीं रहा।

सिल्लो धीरे से उठी और सँभलकर खड़ी हुई। जान पड़ा, उसकी कमर टूट गयी है। एक क्षण साहस बटोरती रही, किन्तु अपनी सफाई में कुछ मुझ न पड़ा। आँखों के सामने अँधेरा था, सिर में चक्कर, कण्ठ सूख रहा था। और सारी देह मुन्न हो गयी थी, मानो रोम-छिद्रों से प्राण उड़े जा रहे हों। एक-एक पग इस तरह रखती हुई, मानो सामने गड्ढा है, वह बाहर आयी और नदी की ओर चली।

द्वार पर मथुरा खड़ा था। बोला--इस वक्त कहाँ जाती हो सिल्लो ?

सिल्लो ने कोई जवाब न दिया। मथुरा ने भी फिर कुछ न पूछा।

वही रुपहली चाँदनी अव भी छाई हुई थी। नदी की लहरें अब भी चाँद की किरणों में नहा रही थीं। और सिल्लो विक्षिप्त-सी स्वप्न-छाया की भाँति नदी में चली जा रही थी।


३०

मिल करीब-करीब पूरी जल चुकी है। लेकिन उसी मिल को फिर से खड़ा करना होगा। मिस्टर खन्ना ने अपनी सारी कोशिशें इसके लिए लगा दी हैं। मजदूरों की हड़ताल जारी है। मगर अब उससे मिल के मालिकों की कोई विशेष हानि नहीं है। नये आदमी कम वेतन पर मिल गये हैं और जी तोड़ कर काम करते हैं; क्योंकि उनमें सभी ऐसे हैं, जिन्होंने बेकारी के कप्ट भोग लिये हैं और अब अपना बस चलते ऐसा कोई काम करना नहीं चाहते जिससे उनकी जीविका में बाधा पड़े। चाहे जितना काम लो, चाहे जितनी कम छुट्टियाँ दो, उन्हें कोई शिकायत नहीं। सिर झुकाये बैलों की