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३०६ गोदान

कई दिन तक होरी से बोलती न थी और न घर का काम करती थी। एक बार इसी बात पर वह अपने नैहर भाग गयी थी। यह भावना सोना में और तीव्र हो गयी थी। जब तक उसका विवाह न हुआ था, यह भावना उतनी बलवान न थी; पर विवाह हो जाने के बाद तो उसने व्रत का रूप धारण कर लिया था। ऐसे स्त्री-पुरुषों की अगर खाल भी खींच ली जाती, तो उसे दया न आती। प्रेम के लिए दाम्पत्य के बाहर उसकी दृष्टि में कोई स्थान न था। स्त्री-पुरुष का एक दूसरे के साथ जो कर्तव्य है, इसी को वह प्रेम समझती थी। फिर सिल्लो से उसका बहन का नाता था। सिल्लो को वह प्यार करती थी, उस पर विश्वास करती थी। वही सिल्लो आज उससे विश्वासघात कर रही है। मथुरा और सिल्लो में अवश्य ही पहले से साँठ-गाँठ होगी। मथुरा उससे नदी के किनारे या खेतों में मिलता होगा। और आज वह इतनी रात गये नदी पार करके इसीलिए आयी है। अगर उसने इन दोनों की बातें सुन न ली होती, तो उसे खबर तक न होती। मथुरा ने प्रेम-मिलन के लिए यही अवसर सबसे अच्छा समझा होगा। घर में सन्नाटा जो है। उसका हृदय सब कुछ जानने के लिए विकल हो रहा था। वह सारा रहस्य जान लेना चाहती थी, जिसमें अपनी रक्षा के लिए कोई विधान सोच सके। और यह मथुरा यहाँ क्यों खड़ा है ? क्या वह उसे कुछ बोलने भी न देगा ?

उसने रोष से कहा--तुम बाहर क्यों नहीं जाते, या यहीं पहरा देते रहोगे ?

मथुरा बिना कुछ कहे बाहर चला गया। उसके प्राण मूखे जाते थे कि कहीं सिल्लो सब कुछ कह न डाले।

और सिल्लो के प्राण सूखे जाते थे कि अब वह लटकती हुई तलवार सिर पर गिरा चाहती है।

तब सोना ने बड़े गम्भीर स्वर में सिल्लो से पूछा--देखो सिल्लो, मुझसे साफ-साफ बता दो, नहीं मैं तुम्हारे सामने, यहीं, अपनी गर्दन पर गंँडासा मार लूंँगी। फिर तुम मेरी सौत बन कर राज करना। देखो, गँडासा वह सामने पड़ा है। एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं।

उसने लपककर सामने आँगन में से गॅडा़सा उठा लिया और उसे हाथ में लिये, फिर बोली--यह मत समझना कि मैं खाली धमकी दे रही हूँ। क्रोध में मैं क्या कर बैठूँ, नहीं कह सकती। साफ-साफ बता दे।

सिलिया काँप उठी। एक-एक शब्द उसके मुंँह से निकल पड़ा, मानो ग्रामोफोन में भरी हुई आवाज़ हो। वह एक शब्द भी न छिपा सकी, सोना के चेहरे पर भीषण संकल्प खेल रहा था, मानो खून सवार हो।

सोना ने उसकी ओर बरछी की-सी चुभनेवाली आँखों से देखा और मानों कटार का आघात करती हुई बोली--ठीक-ठीक कहती हो?

'बिलकुल ठीक। अपने बच्चे की कसम।'

'कुछ छिपाया तो नहीं ?'

'अगर मैंने रत्ती-भर छिपाया हो तो मेरी आँखें फूट जायँ।'