गोदान | ३०५ |
के अनुभव बयान करेगी--सोहाग-रात और मधुर मिलन की बातें होंगी। और सोना के मुंँह में दही जमा हुआ है। वह यहाँ आकर पछतायी।
आखिर सोना ने रूखे स्वर में पूछा--इतनी रात को कैसे चली, सिल्लो ?
सिल्लो ने आँसुओं को रोकने की चेष्टा करके कहा--तुमसे मिलने को बहुत जी चाहता था। इतने दिन हो गये, भेंट करने चली आयी।
सोना का स्वर और कठोर हुआ-- लेकिन आदमी किसी के घर जाता है, तो दिन को कि इतनी रात गये ?
वास्तव में सोना को उसका आना बुरा लग रहा था। वह समय उसकी प्रेम-क्रीड़ा और हास-विलास का था, सिल्लो ने उसमें बाधक होकर जैसे उसके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली थी।
सिल्लो निःसंज्ञ-सी भूमि की ओर ताक रही थी। धरती क्यों नहीं फट जाती कि वह उसमें समा जाय। इतना अपमान ! उसने अपने इतने ही जीवन में बहुत अपमान सहा था, बहुत दुर्दशा देखी थी, लेकिन आज यह फाँस जिस तरह उसके अन्तःकरण में चुभ गयी, वैसी कभी कोई बात न त्रुभी थी। गुड़ घर के अन्दर मटकों में बन्द रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक्त तो पानी का एक छीटा भी उसका सर्वनाश कर देगा। सिलिया के अन्तःकरण की सारी कोमल भावनाएँ इम वक्त मुँह खोले बैठी हुई थीं कि आकाश से अमृत-वर्षा होगी। बरसा क्या, अमृत के बदले विप, और सिलिया के रोम-रोम में दौड़ गया। सर्प-दंश के समान लहरें आयी। घर में उपवास करके सो रहना और बात है; लेकिन पंगत से उठा दिया जाना तो डूब मरने ही की बात है। सिलिया को यहाँ एक क्षण ठहरना भी असह्य हो गया, जैसे कोई उसका गला दबाये हुए हो। वह कुछ न पूछ सकी। सोना के मन में क्या है, यह वह भाँप रही थी। वह वाँबी में बैठा हुआ साँप कहीं बाहर न निकल आये, इसके पहिले ही वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी। कैसे भागे, क्या बहाना करे ? उसके प्राण क्यों नहीं निकल जाते !
मथुरा ने भण्डारे की कुंजी उठा ली थी कि सिलिया के जलपान के लिए कुछ निकाल लाये; कर्त्तव्यविमूढ़-सा खड़ा था। इधर सिल्लो की साँस टॅगी हुई थी, मानों सिर पर तलवार लटक रही हो।
सोना की दृष्टि में सबसे बड़ा पाप किसी पुरुष का पर-स्त्री और स्त्री का पर-पुरुष की ओर ताकना था। इस अपराध के लिए उसके यहाँ कोई क्षमा न थी। चोरी, हत्या, जाल, कोई अपराध इतना भीषण न था। हँसी-दिल्लगी को वह बुरा न समझती थी, अगर खुले हुए रूप में हो, लुके-छिपे की हँसी-दिल्लगी को भी वह हेय समझती थी। छुटपन से ही वह बहुत-सी रीति की बातें जानने और समझने लगी थी। होरी को जब कभी हाट से घर आने में देर हो जाती थी और धनिया को पता लग जाता था कि वह दुलारी सहुआइन की दुकान पर गया था, चाहे तम्बाखू लेने ही क्यों न गया हो, तो वह कई-