गोदान | २९९ |
भोला के खून में कुछ स्फूर्ति आयी। बोला--तो तुम्हारी यही सलाह है ?
धनिया बोली--हाँ, मेरी यही सलाह है। अब सौ पचास बरस तो जीओगे नहीं। समझ लेना इतनी ही उमिर थी।
होरी ने अब की ज़ोर से फ़टकारा--चुप रह, बड़ी आयी है वहाँ से सतवन्ती बनके। जबरदस्ती चिड़िया तक तो पिंजड़े में रहती नहीं, आदमी क्या रहेगा। तुम उसे छोड़ दो भोला और समझ लो, मर गयी और जाकर अपने बाल-बच्चों में आराम से रहो। दो रोटी खाओ और राम का नाम लो। जवानी के सुख अब गये। वह औरत चंचल है, बदनामी और जलन के सिवा तुम उससे कोई सुख न पाओगे।
भोला नोहरी को छोड़ दे, असम्भव ! नोहरी इस समय भी उसकी ओर रोष-भरी आँखों से तरेरती हुई जान पड़ती थी, लेकिन नहीं, भोला अव उसे छोड़ ही देगा। जैसा कर रही है, उसका फल भोगे।
आँखों में आँसू आ गये। बोला--होरी भैया, इस औरत के पीछे मेरी जितनी सांँसत हो रही है, मैं ही जानता हूँ। इसी के पीछे कामता से मेरी लड़ाई हुई। बुढ़ापे में यह दाग़ भी लगना था, वह लग गया। मुझे रोज़ ताना देती है कि तुम्हारी तो लड़की निकल गयी। मेरी लड़की निकल गयी, चाहे भाग गयी; लेकिन अपने आदमी के साथ पड़ी तो है, उसके सुख-दुख की साथिन तो है। उसकी तरह तो मैंने औरत ही नहीं देखी। दूसरों के साथ तो हँसती है, मुझे देखा तो कुप्पे-सा मुंँह फुला लिया। मैं गरीब आदमी ठहरा, तीन-चार आने रोज़ की मजूरी करता हूँ। दूध-दही, माँस-मछली, रवड़ी-मलाई कहाँ से लाऊँ !
भोला यहाँ से प्रतिज्ञा करके अपने घर गये। अब वेटों के साथ रहेंगे, बहुत धक्के खा चुके; लेकिन दूसरे दिन प्रातःकाल होरी ने देखा, तो भोला दुलारी सहुआइन की दुकान से तमाखू लिए चले जा रहे थे।
होरी ने पुकारना उचित न समझा। आसक्ति में आदमी अपने बस में नहीं रहता। वहाँ से आकर धनिया से बोला--भोला तो अभी वहीं है। नोहरी ने सचमुच इन पर कोई जादू कर दिया है।
धनिया ने नाक सिकोड़कर कहा--जैसी बेहया वह है, वैसा ही बेहया यह है। ऐसे मर्द को तो चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए। अब वह सेखी न जाने कहाँ गयी। झुनिया यहाँ आयी, तो उसके पीछे डण्डा लिए फिर रहे थे। इज्जत बिगड़ी जाती थी। अब इज्जत नही बिगड़ती !
होरी को भोला पर दया आ रही थी। बेचारा इस कुलटा के फेर में पड़कर अपनी ज़िन्दगी बरबाद किये डालता है। छोड़कर जाय भी, तो कैसे? स्त्री को इस तरह छोड़कर जाना क्या सहज है ? यह चुडै़ल उसे वहाँ भी तो चैन से न बैठने देगी ! कहीं पंचायत करेगी, कहीं रोटी-कपड़े का दावा करेगी। अभी तो गाँव ही के लोग जानते हैं। किसी को कुछ कहते संकोच होता है। कनफुसकियाँ करके ही रह जाते हैं। तब तो दुनिया भी भोला ही को बुरा कहेगी। लोग यही तो कहेंगे, कि जब मर्द ने छोड़