२९८ | गोदान |
रख देंगे। हमीं थे कि तुम्हारे घर का बिस उठाके पी गये, और कभी मुंँह पर नहीं लाये। कोई यहाँ द्वार पर नहीं खड़ा होने देता था। हमने तुम्हारा मरजाद बना दिया, तुम्हारे मुंँह की लाली रख ली।
रात के दस बज गये थे। सावन की अँधेरी घटा छायी थी। सारे गाँव में अन्धकार था। होरी ने भोजन करके तमाखू पिया और सोने जा रहा था कि भोला आकर खड़ा हो गया।
होरी ने पूछा--कैसे चले भोला महतो! जब इसी गाँव में रहना है, तो क्यों अलग छोटा-सा घर नहीं बना लेते ? गाँव में लोग कैसी-कैसी कुत्सा उड़ाया करते हैं, क्या यह तुम्हें अच्छा लगता है ? बुरा न मानना, तुमसे सम्बन्ध हो गया है, इसलिए तुम्हारी बदनामी नहीं सुनी जाती, नहीं मुझे क्या करना था।
धनिया उसी समय लोटे में पानी लेकर होरी के सिरहाने रखने आयी। सुनकर बोली--दूसरा मर्द होता, तो ऐसी औरत का सिर काट लेता।
होरी ने डाँटा--क्यों बे-बात की बात करती है। पानी रख दे और जा सो। आज तू ही कुराह चलने लगे, तो मैं तेरा सिर काट लूंँगा? काटने देगी ?
धनिया उसे पानी का एक छींटा मारकर बोली--कुराह चले तुम्हारी बहन, मैं क्यों कुराह चलने लगी। मैं तो दुनिया की बात कहती हूँ, तुम मुझे गालियाँ देने लगे। अब मुंँह मीठा हो गया होगा। औरत चाहे जिस रास्ते जाय, मर्द टुकुर-टुकुर देखता रहे। ऐसे मर्द को मैं मर्द नहीं कहती।
होरी दिल में कटा जाता था। भोला उससे अपना दुख-दर्द कहने आया होगा। वह उलटे उसी पर टूट पड़ी। ज़रा गर्म होकर बोला--तू जो सारे दिन अपने ही मन की किया करती है, तो मैं तेरा क्या बिगाड़ लेता हूँ। कुछ कहता हूँ तो काटने दौड़ती है। यही सोच।
धनिया ने लल्लो-चप्पो करना न सीखा था, बोली--औरत घी का घड़ा लुढ़का दे, घर में आग लगा दे, मर्द सह लेगा; लेकिन उसका कुराह चलना कोई मर्द न सहेगा।
भोला दुखित स्वर में बोला--तू बहुत ठीक कहती है धनिया ! बेसक मुझे उसका सिर काट लेना चाहिए था, लेकिन अब उतना पौरुख तो नहीं रहा। तू चलकर समझा दे, मैं सब कुछ करके हार गया।
जब औरत को बस में रखने का बूता न था, तो सगाई क्यों की थी? इसी छीछालेदर के लिए ? क्या सोचते थे, वह आकर तुम्हारे पाँव दबायेगी, तुम्हें चिलम भर-भर पिलायेगी और जब तुम बीमार पड़ोगे तो तुम्हारी सेवा करेगी? तो ऐसा वही औरत कर सकती है, जिसने तुम्हारे साथ जवानी का सुख उठाया हो। मेरी समझ में यही नहीं आता कि तुम उसे देखकर लटू कैसे हो गये। कुछ देख-भाल तो कर लिया होता कि किस स्वभाव की है, किस रंग-ढंग की है। तुम तो भूखे सियार की तरह टूट पड़े। अब तो तुम्हारा धरम यही है कि गॅडासे से उसका सिर काट लो। फाँसी ही तो पाओग। फाँसी इस छीछालेदर से अच्छी।