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गोदान
 

'यह तो उनका काम था कि किसी को अपने साथ ले लेते। भगवान के दिये दोदो बेटे हैं।'

'न होंगे घर पर। दूध लेकर बाजार गये होंगे।'

'यह तो अच्छी दिल्लगी है कि अपना माल भी दो और उसे घर तक पहुँचा भी दो। लाद दे, लदा दे, लादनेवाला साथ कर दे।'

'अच्छा भाई, कोई मत जाय। मैं पहुँचा दूंगी। बड़ों की सेवा करने में लाज नहीं है।'

'और तीन खाँचे उन्हें दे दूं,तो अपन वैल क्या खायेंगे?'

'यह सब तो नेवता देने के पहले ही सोच लेना था। न हो, तुम और गोबर दोनों जने चले जाओ।

'मुरौवत मुरौवत की तरह की जाती है, अपना घर उठाकर नहीं दे दिया जाता!'

'अभी ज़मींदार का प्यादा आ जाय,तो अपने सिर पर भूसा लादकर पहुंचाओगे तुम,तुम्हारा लड़का,लड़की सब। और वहाँ साइत मन-दो-मन लकड़ी भी फाड़नी पड़े।'

'ज़मींदार की बात और है।'

साँचा:GaP'हाँ,वह डंडे के ज़ोर से काम लेता है न।'

'उसके खेत नहीं जोतते?'

'खेत जोतते हैं,तो लगान नहीं देते?'

'अच्छा भाई,जान न खा,हम दोनों चले जायेंगे। कहाँ-से-कहाँ मैंने इन्हें मूसा देने को कह दिया। या तो चलेगी नहीं,या चलेगी तो दौड़ने लगेगी।'

तीनों खाँचे भूसे से भर दिये गये। गोवर कुढ़ रहा था। उसे अपने बाप के व्यवहारों में ज़रा भी विश्वास न था। वह समझता था, यह जहाँ जाते हैं, वहीं कुछन-कुछ घर से खो आते है। धनिया प्रसन्न थी। रहा होरी, वह धर्म और स्वार्थ के बीच में डूब-उतरा रहा था।

होरी और गोबर मिलकर एक खाँचा बाहर लाये। भोला ने तुरन्त अपने अंगौछे का वीड़ बनाकर सिर पर रखते हुए कहा--मैं इसे रखकर अभी भागा आता हूँ। एक खाँचा और लूंगा।

होरी वोला-एक नहीं, अभी दो और भरे धरे हैं। और तुम्हें न आना पड़ेगा। मै और गोबर एक-एक खाँचा लेकर तुम्हारे साथ ही चलते हैं।

भोला स्तम्भित हो गया। होरी उसे अपना भाई बल्कि उससे भी निकट जान पड़ा। उसे अपने भीतर एक ऐसी तृप्ति का अनुभव हुआ, जिसने मानो उसके संपूर्ण जीवन को हरा कर दिया।

तीनों भूसा लेकर चले,तो राह में बातें होने लगीं।

भोला ने पूछा-दशहरा आ रहा है,मालिकों के द्वार पर तो बड़ी धूमधाम होगी?

'हाँ,तम्बू सामियाना गड़ गया है। अब की लीला में मैं भी काम करूंगा। राय साहब ने कहा है,तुम्हें राजा जनक का माली बनना पड़ेगा।'