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गोदान २५


'बहुएँ भी तो वैसी ही चटोरिन आयी हैं। अबकी सबों ने दो रुपए के खरबूजे उधार खा डाले। उधार मिल जाय, फिर उन्हें चिन्ता नहीं होती कि देना पड़ेगा या नहीं।'

'और भोला रोते काहे को हैं?'

गोबर आकर बोला-भोला दादा आ पहुँचे। मन-दो मन भूसा है, वह उन्हें दे फिर उनकी सगाई ढूंढ़ने निकलो।

धनिया ने समझाया--आदमी द्वार पर बैठा है,उसके लिए खाट-वाट तो डाल ही दी,ऊपर से लगे भुनभुनाने। कुछ तो भलमंसी सीखो। कलसा ले जाओ,पानी नरकर रख दो,हाथ-मुंह धोयें,कुछ रस-पानी पिला दो। मुसीबत में ही आदमी दूसरों के सामने हाथ फैलाता है।

होरी बोला--रस-वस का काम नहीं है,कौन कोई पाहुने हैं।

धनिया बिगड़ी-पाहुने और कैसे होते हैं! रोज़-रोज़ तो तुम्हारे द्वार पर नही आते? इतनी दूर से धूप-घाम में आये हैं, प्यास लगी ही होगी। रुपिया, देख डब्बे में तमाखू है कि नहीं, गोबर के मारे काहे को बची होगी। दौड़कर एक पैसे का तमाख सहुआइन की दुकान से ले ले।

भोला की आज जितनी खातिर हुई,और कभी न हुई होगी। गोबर ने खाट डाल दी,सोना रस घोल लायी,रूपा तमाखू भर लायी। धनिया द्वार पर किवाड़ की आड़ में खड़ी अपने कानों से अपना बखान मुनने के लिए अधीर हो रही थी।

भोला ने चिलम हाथ में लेकर कहा-अच्छी घरनी घर में आ जाय, तो समझ लो लक्ष्मी आ गयी। वही जानती है छोटे-बड़े का आदर-सत्कार कैसे करना चाहिए।

धनिया के हृदय में उल्लास का कम्पन हो रहा था। चिन्ता और निराशा और अभाव से आहत आत्मा इन शब्दों में एक कोमल शीतल स्पर्श का अनुभव कर रही थी।

होरी जब भोला का खाँचा उठाकर भूसा लाने अन्दर चला, तो धनिया भी पीछेपीछे चली। होरी ने कहा-जाने कहाँ से इतना बड़ा खाँचा मिल गया। किसी भड़भूजे से माँग लिया होगा। मन-भर से कम में न भरेगा। दो खाँचे भी दिये,तो दो मन निकल जायँगे।

धनिया फूली हुई थी। मलामत की आँखों से देखती हुई बोली--या तो किसी को नेवता न दो,और दो तो भरपेट खिलाओ। तुम्हारे पास फूल-पत्र लेने थोड़े ही आये है कि चेंगेरी लेकर चलते। देते ही हो,तो तीन खाँचे दे दो। भला आदमी लड़कों को क्यों नहीं लाया। अकेले कहाँ तक ढोयेगा। जान निकल जायगी।

'तीन खाँचे तो मेरे दिये न दिये जायेंगे?'

'तब क्या एक खाँचा देकर टालोगे? गोबर से कह दो, अपना खाँचा भरकर उनके साथ चला जाय।'

'गोबर ऊख गोड़ने जा रहा है।'

'एक दिन न गोड़ने से ऊख न सूख जायगी।'