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गो-दान २६१

होरी यहाँ से घर चला, तो उसका दिल उछल रहा था। जीवन में ऐसा सुखद अनुभव उसे न हुआ था। रास्ते में शोभा के घर गया और सगाई लेकर चलने के लिए नेवता दे आया। फिर दोनों दातादीन के पास सगाई की सायत पूछने गये। वहाँ से आकर द्वार पर सगाई की तैयारियों की सलाह करने लगे।

धनिया ने बाहर निकलकर कहा––पहर रात गयी, अभी रोटी खाने की बेला नहीं आयी? खाकर बैठो। गपड़चौथ करने को तो सारी रात पड़ी है।

होरी ने उसे भी परामर्श में शरीक होने का अनुरोध करते हुए कहा––इसी सहालग में लगन ठीक हुआ है। बता, क्या-क्या सामान लाना चाहिए। मुझे तो कुछ मालूम नहीं।

'जब कुछ मालूम ही नहीं, तो सलाह करने क्या बैठे हो। रुपए-पैसे का डौल भी हुआ कि मन की मिठाई खा रहे हो।'

होरी ने गर्व से कहा––तुझे इससे क्या मतलब। तू इतना बता दे क्या-क्या सामान लाना होगा?

'तो मैं ऐसी मन की मिठाई नहीं खाती।'

'तू इतना बता दे कि हमारी बहनों के ब्याह में क्या-क्या सामान आया था।'

'पहले यह बता दो, रुपए मिल गये?'

'हाँ, मिल गये, और नहीं क्या भंग खायी है।'

'तो पहले चलकर खा लो। फिर सलाह करेंगे।'

मगर जब उसने मुना कि दुलारी से बातचीत हुई है, तो नाक सिकोड़ कर बोली––उससे रुपए लेकर आज तक कोई उरिन हुआ है? चुडै़ल कितना कसकर सूद लेती है!

'लेकिन करता क्या? दूसरा देता कौन है।'

'यह क्यों नहीं कहते कि इसी बहाने दो गाल हँसने-बोलने गया था। बूढ़े हो गये, पर यह बान न गयी।'

'तू तो धनिया, कभी-कभी बच्चों की-सी बातें करने लगती है। मेरे-जैसे फटेहालों से वह हँस-बोलेगी? सीधे मुंह बात तो करती नहीं।'

'तुम-जैसों को छोड़कर उसके पास और जायगा ही कौन?' .

'उसके द्वार पर अच्छे-अच्छे नाक रगड़ते हैं धनिया, तू क्या जाने। उसके पास लच्छमी है।

'उसने जरा-सी हामी भर दी, तुम चारों ओर खुशखबरी लेकर दौड़े।'

'हामी नहीं भर दी, पक्का वादा किया है।'

होरी रोटी खाने गया और शोभा अपने घर चला गया, तो सोना सिलिया के साथ बाहर निकली। वह द्वार पर खड़ी सारी बातें सुन रही थी। उसकी सगाई के लिए दो सौ रुपए दुलारी से उधार लिये जा रहे हैं, यह बात उसके पेट में इस तरह खलबली मचा रही थी, जैसे ताजा चूना पानी में पड़ गया हो। द्वार पर एक कुप्पी जल रही थी, जिससे ताक के ऊपर की दीवार काली हो गयी थी। दोनों बैल नाँद में सानी खा रहे