गो-दान | २५९ |
गोबर उसके लिए लाया था। यह सब तमाशा देख-देखकर होरी का खून सूखता जाता था, मानो उसकी खेती चौपट करने के लिए आकाश में ओलेवाले पीले बादल उठे चले आते हों!
एक दिन तीनों उसी कुएँ पर नहाने जा पहुंचे, जहाँ होरी ऊख सींचने के लिए पुर चला रहा था। सोना मोट ले रही थी। होरी का खून आज खौल उठा।
उसी साँझ को वह दुलारी सहुआइन के पास गया।
सोचा, औरतों में दया होती है शायद इसका दिल पसीज जाय और कम सद पर रुपए दे दे। मगर दलारी अपना ही रोना ले बैठी। गाँव में ऐसा कोई घर न था जिस पर उसके कुछ रुपए न आते हों, यहाँ तक कि झिंगुरीसिंह पर भी उसके बीस रुपए आते थे; लेकिन कोई देने का नाम न लेता था। बेचारी कहाँ से रुपए लाये?
होरी ने गिड़गिड़ा कर कह––भाभी, बड़ा पुन्न होगा। तुम रुपए न दोगी, मेरे गले की फाँसी खोल दोगी। झिंगुरी और पटेसरी मेरे खेतों पर दाँत लगाये हुए हैं। मैं सोचता हूँ, बाप-दादा की यही तो निसानी है, यह निकल गयी, तो जाऊँगा कहाँ? एक सपूत वह होता है कि घर की सम्पत बढ़ाता है, मैं ऐसा कपूत हो जाऊँ कि बाप-दादों की कमाई पर झाड़ फेर दूं।
दुलारी ने कसम खाई-होरी, मैं ठाकुर जी के चरन छूकर कहती हूँ कि इस समय मेरे पास कुछ नहीं है। जिसने लिया, वह देता नहीं,तो मैं क्या करूँ? तुम कोई गैर तो नहीं हो। सोना भी मेरी ही लड़की है; लेकिन तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूँ? तुम्हारा ही भाई हीरा है। बैल के लिए पचास रुपए लिये। उसका तो कहीं पता-ठिकाना नहीं, उसकी घरवाली से मांगो तो लड़ने को तैयार। शोभा भी देखने में बड़ा सीधा-सादा है; लेकिन पैसा देने नहीं जानता। और असल बात तो यह है कि किसी के पास है ही नहीं, दें कहाँ से। सबकी दशा देखती हूँ, इसी मारे सबर कर जाती हूँ। लोग किसी तरह पेट पाल रहे हैं, और क्या। खेत-बारी बेचने की मैं सलाह न दूंगी। कुछ नहीं है, मरजाद तो है।
फिर कनफुसकियों में बोली––पटेसरी लाला का लौंडा तुम्हारे घर की ओर बहुत चक्कर लगाया करता है। तीनों का वही हाल है। इनसे चौकस रहना। यह सहरी हो गये, गाँव का भाई-चारा क्या समझें। लड़के गाँव में भी हैं; मगर उनमें कुछ लिहाज है, कुछ अदब है, कुछ डर है। ये सब तो छूटे साँड़ हैं। मेरी कौसल्या ससुराल से आयी थी, मैंने सबों के ढंग देखकर उसके ससुर को बुला कर बिदा कर दिया। कोई कहाँ तक पहरा दे।
होरी को मुस्कराते देखकर उसने सरस ताड़ना के भाव से कहा––हँसोगे होरी तो मैं भी कुछ कह दूंगी। तुम क्या किसी से कम नटखट थे। दिन में पचोसों बार किसी-न-किसी बहाने मेरी दुकान पर आया करते थे; मगर मैंने कभी ताका तक नहीं।
होरी ने मीठे प्रतिवाद के साथ कहा––यह तो तुम झूठ बोलती हो भाभी! बिना