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गो-दान
 


कोई रास्ता ही नहीं रहा। गोविन्दी से बुनियाद का पत्थर रखवायेंगे! ऐसी दशा में मेरा अलग रहना हास्यास्पद है या नहीं। गोविन्दी कैसे राजी हो गयी,मेरी समझ में नहीं आता और मालती ने कैसे उसे सहन कर लिया,यह समझना और भी कठिन है। आपका क्या खयाल है,इसमें कोई रहस्य है या नहीं?

राय साहब ने आत्मीयता जताई-ऐसे मुआमले में स्त्री को हमेशा पुरुष से सलाह ले लेनी चाहिए!

खन्ना ने राय साहब को धन्यवाद की आँखों से देखा-इन्हीं बातों पर गोविन्दी से मेरा जी जलता है,और उस पर मुझी को लोग बुरा कहते हैं। आप ही सोचिए,मुझे इन झगड़ों से क्या मतलब। इनमें तो वह पड़े,जिसके पास फालतू रुपए हों, फालतू समय हो और नाम की हवस हो। होना यही है कि दो-चार महाशय सेक्रेटरी और अण्डर सेक्रेटरी और प्रधान और उपप्रधान बनकर अफ़सरों को दावतें देंगे,उनके कृपापात्र बनेंगे और यूनिवर्सिटी की छोकरियों को जमा करके बिहार करेंगे। व्यायाम तो केवल दिखाने के दांत हैं। ऐसी संस्था में हमेशा यही होता है और यही होगा और उल्लू बनेंगे हम,और हमारे भाई, जो धनी कहलाते हैं और यह सब गोविन्दी के कारण।

वह एक बार कुरसी से उठे,फिर बैठ गये। गोविन्दी के प्रति उनका क्रोध प्रचण्ड होता जाता था। उन्होंने दोनों हाथ से सिर को संभालकर कहा-मैं नहीं समझता,मुझे क्या करना चाहिए।

राय साहब ने ठकुर-सोहाती की-कुछ नहीं,आप गोविन्दी देवी से साफ़ कह दें,तुम मेहता को इनकारी खत लिख दो,छुट्टी हुई। मैं तो लाग-डाँट में फंस गया। आप क्यों फंसें?

खन्ना ने एक क्षण इस प्रस्ताव पर विचार करके कहा–लेकिन सोचिए,कितना मुश्किल काम है। लेडी विलसन से इसका ज़िक्र आ चुका होगा,सारे शहर में खबर फैल गयी होगी और शायद आज पत्रों में भी निकल जाय। यह सब मालती की शरारत है। उसीने मुझे ज़िच करने का यह ढंग निकाला है।

'हाँ,मालूम तो यही होता है।'

'वह मुझे ज़लील करना चाहती है।'

'आप शिलान्यास के एक दिन पहले बाहर चले जाइएगा।'

'मुश्किल है राय साहब! कहीं मुंह दिखाने की जगह न रहेगी। उस दिन तो मुझे हैज़ा भी हो जाय तो वहाँ जाना पड़ेगा।'

राय साहब आशा बाँधे हुए कल आने का वादा करके ज्यों ही निकले कि खन्ना ने अन्दर जा कर गोविन्दी को आड़े हाथों लिया-तुमने इस व्यायामशाला की नींव रखना क्यों स्वीकार किया?

गोविन्दी कैसे कहे कि यह सम्मान पाकर वह मन में कितनी प्रसन्न हो रही थी,उस अवसर के लिए कितने मनोनियोग से अपना भाषण लिख रही थी और कितनी ओजभरी कविता रची थी। उसने दिल में समझा था,यह प्रस्ताव स्वीकार करके वह