गो-दान | २३७ |
खन्ना ने अविश्वास के भाव से कहा––या तो आपको याद नहीं है, या आप छिपा रहे हैं।
राय साहब ने जोर देकर कहा––जी नहीं, मैं न भूला हूँ, और न छिपा रहा हूँ। मेरी जायदाद इस वक्त कम से कम पचास लाख की है और ससुराल की जायदाद भी इससे कम नही है। इतनी जायदाद पर दस-पाँच लाख का बोझ कुछ नहीं के बराबर है।
'लेकिन यह आप कैसे कह सकते हैं कि ससुराली जायदाद पर भी कर्ज नही है।'
'जहाँ तक मुझे मालूम है,वह जायदाद बे-दाग़ है।'
'और मुझे यह सूचना मिली है कि उस जायदाद पर दस लाख से कम का भार नहीं है। उस जायदाद पर तो अब कुछ मिलने से रहा, और आपकी जायदाद पर भी मेरे खयाल में दस लाख से कम देना नहीं है। और वह जायदाद अब पचास लाख की नहीं मुश्किल से पचीस लाख की है। इस दशा में कोई बैंक आपको कर्ज़ नहीं दे सकता। यों समझ लीजिए कि आप ज्वालामुखी के मुख पर खड़े हैं। एक हल्की सी ठोकर आपको पाताल में पहुँचा सकती है। आपको इस मौके पर बहुत सँभलकर चलना चाहिए।'
राय साहब ने उनका हाथ अपनी तरफ़ खींचकर कहा––यह सब मैं खूब समझता हूँ, मित्रवर! लेकिन जीवन की ट्रेजेडी और इसके सिवा क्या है कि आपकी आत्मा जो काम करना नहीं चाहती, वही आपको करना पड़े। आपको इस मौके पर मेरे लिए कम से कम दो लाख का इन्तजाम करना पड़ेगा।
खन्ना ने लम्बी साँस लेकर कहा––माई गाड! दो लाख। असम्भव, बिलकुल असम्भव!
'मैं तुम्हारे द्वार पर सर पटककर प्राण दे दूँगा, खन्ना इतना समझ लो। मैंने तुम्हारे ही भरोसे यह सारे प्रोग्राम बाँधे हैं। अगर तुमने निराश कर दिया, तो शायद मुझे जहर खा लेना पड़े। मैं सूर्यप्रतापसिंह के सामने घुटने नहीं टेक सकता। कन्या का विवाह अभी दो चार महीने टल सकता है। मुक़दमा दायर करने के लिए अभी काफ़ी वक्त है; लेकिन यह एलेक्शन सिर पर आ गया है, और मुझे सबसे बड़ी फिक्र यही है।'
खन्ना ने चकित होकर कहा––तो आप एलेक्शन में दो लाख लगा देंगे?
'एलेक्शन का सवाल नहीं है भाई, यह इज्जत का सवाल है। क्या आपकी राय में मेरी इज्जत दो लाख की भी नहीं। मेरी सारी रियासत बिक जाय, ग़म नहीं; मगर सूर्यप्रतापसिंह को मैं आसानी से विजय न पाने दूँगा।'
खन्ना ने एक मिनट तक धुआँ निकालने के बाद कहा––बैंक की जो स्थिति है वह मैंने आपके सामने रख दी। बैंक ने एक तरह से लेन-देन का काम बन्द कर दिया है। मैं कोशिश करूँगा कि आपके साथ खास रिआयत की जाय; लेकिन Business is Business यह आप जानते हैं। पर मेरा कमीशन क्या रहेगा? मुझे आपके