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गोदान २१


कि द्वार पर मईया डाल ली और किसी ने कुछ नहीं कहा। घरे ने द्वार पर खूटा गाड़ा था, जिस पर कारिन्दों ने दो रुपए डाँड़ ले लिये थे। तलैया से कितनी मिट्टी हमने खोदी, कारिन्दा ने कुछ नहीं कहा। दूसरा खोदे तो नजर देनी पड़े। अपने मतलव के लिए सलामी करने जाता हूँ, पाँव में सनीचर नहीं है और न सलामी करने में कोई बड़ा सुख मिलता है। घण्टों खड़े रहो,तव जाके मालिक को खबर होती है। कभी बाहर निकलते हैं. कभी कहला देते हैं कि फुरसत नहीं है।

गोबर ने कटाक्ष किया-बड़े आदमियों की हॉ-में-हाँ मिलाने में कुछ-न-कुछ आनन्द तो मिलता ही है। नहीं लोग मेम्बरी के लिए क्यों खड़े हो?

'जब सिर पर पड़ेगी तब मालूम होगा बेटा,अभी जो चाहे कह लो। पहले मैं भी यही सब वातें सोचा करता था; पर अब मालूम हुआ कि हमारी गरदन दूसरों के पैगे के नीचे दबी हुई है, अकड़ कर निबाह नहीं हो सकता।'

पिता पर अपना क्रोध उतारकर गोबर कुछ शान्त हो गया और चुपचाप चलने लगा। सोना ने देखा, रूपा वाप की गोद में चढ़ी बैठी है तो ईर्ष्या हुई। उसे डाँटकर बोली--अब गोद से उतरकर पाँव-पाँव क्यों नही चलती, क्या पांव टूट गये है? .

रूपा ने बाप की गरदन में हाथ डालकर ढिठाई से कहा--न उतरेंगे जाओ। काका, बहन हमको रोज़ चिढ़ाती है कि तू रूपा है, मै सोना हूँ। मेग नाम कुछ और रख दो।

होरी ने सोना को बनावटी रोप मे देखकर कहा--तू इसे क्यों चिढ़ाती है सोनिया? सोना तो देखने को है। निवाह तो रूपा से होता है। रूपा न हो,तो रुपए कहाँ से बनें,बता।

सोना ने अपने पक्ष का समर्थन किया--सोना न हो तो मोहन कैसे बने,नथुनियाँ कहाँ से आयें,कण्ठा कैसे बने?

गोवर भी इस विनोदमय विवाद में शरीक हो गया। रूपा से वोला-तू कह दे कि सोना तो सूवी पत्ती की तरह पीला होता है, रूपा तो उजला होता है जैसे मूरज।

सोना बोली-शादी-व्याह में पीली साड़ी पहनी जाती है, उजली साड़ी कोई नही पहनता।

रूपा इस दलील से परास्त हो गयी। गोबर और होरी की कोई दलील इसके सामने न ठहर सकी। उसने क्षुब्ध आँखों से होरी को देखा।

होरी को एक नयी युक्ति सूझ गयी। बोला--सोना वड़े आदमियों के लिए है। हम गरीबों के लिए तो रूपा ही है। जैसे जौ को राजा कहते हैं, गेहूँ को चमार; इसलिए न कि गेहूँ बड़े आदमी खाते हैं, जौ हम लोग खाते हैं।

सोना के पास इस सबल युक्ति का कोई जवाब न था। परास्त होकर बोली-तुम सब जने एक ओर हो गये,नहीं रुपिया को रुलाकर छोड़ती।

रूपा ने उँगली मटकाकर कहा-ए राम,सोना चमार-ए राम, सोना चमार।

इस विजय का उसे इतना आनन्द हुआ कि बाप की गोद में रह न सकी। ज़मीन