यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गो-दान
२२५
 


हैं। अच्छा खाने से लोग बलवान् होते हैं,मोटे नहीं होते। मोटे होते हैं घास-पात खाने से।

'तो ठकुराइन ठाकुर से बलवान है?'

'और क्या। अभी उस दिन दोनों में लड़ाई हुई,तो ठकुराइन ने ठाकुर को ऐसा ढकेला कि उनके घुटने फूट गये।'

'तो तू भी पहले आप खाकर तव जीजा को खिलायेगी ?'

'और क्या।

'अम्माँ तो पहले दादा को खिलाती हैं।'

'तभी तो जब देखो तब दादा डाँट देते हैं। मैं बलवान होकर अपने मरद को काबू में रवूगी। तेरा मरद तुझे पीटेगा,तेरी हड्डी तोड़कर रख देगा।'

रूपा रुआंसी होकर बोली-+क्यों पीटेगा,मैं मार खाने का काम ही न करूँगी।

'वह कुछ न सुनेगा। तूने जरा भी कुछ कहा और वह मार चलेगा। मारते-मारते तेरी खाल उधेड़ लेगा।'

रूपा ने बिगड़कर सोना की साड़ी दाँतों से फाड़ने की चेष्टा की। और असफल होने पर चुटकियाँ काटने लगी।

साँचा:GPसोना ने और चिढ़ाया--वह तेरी नाक भी काट लेगा। इस पर रूपा ने बहन को दाँत से काट खाया। सोना की बाँह लहुआ गयी। उसने रूपा को ज़ोर से ढकेल दिया। वह गिर पड़ी और उठकर रोने लगी। सोना भी दाँतों के निशान देखकर रो पड़ी।

उन दोनों का चिल्लाना सुनकर गोबर गुस्से में भरा हुआ आया और दोनों को दो-दो घूसे जड़ दिये। दोनों रोती हुई खेत से निकलकर घर चल दीं। सिंचाई का काम रुक गया। इस पर पिता-पुत्र में एक झड़प हो गयी।

होरी ने पूछा-पानी कौन चलाएगा? दौड़े-दौड़े गये, दोनों को भगा आये। अब जाकर मना क्यों नहीं लाते?

साँचा:GP'तुम्हीं ने इन सबों को बिगाड़ रखा है।'

'इस तरह मारने से और भी निर्लज्ज हो जायेंगी।'

'दो जून खाना बन्द कर दो,आप ठीक हो जायँ।'

'मैं उनका बाप हूँ,कसाई नहीं हूँ।'

पाँव में एक बार ठोकर लग जाने के बाद किसी कारण से बार-बार ठोकर लगती है और कभी-कभी अँगूठा पक जाता है और महीनों कष्ट देता है। पिता और पुत्र के सद्भाव को आज उसी तरह की चोट लग गयी थी और उस पर यह तीसरी चोट पड़ी।

गोबर ने घर आकर झुनिया को खेत में पानी देने के लिए साथ लिया। झुनिया बच्चे को लेकर खेत में गयी। धनिया और उसकी दोनों बेटियाँ ताकती रहीं। माँ को भी गोबर की यह उद्दण्डता बुरी लगती थी। रूपा को मारता तो वह बुरा न मानती, मगर जवान लड़की को मारना,यह उसके लिए असह्य था।