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गो-दान
 


सकती थी। बोली--बेटा,तुम भी अन्धेर करते हो। हुक्का-पानी बन्द हो जाता,तो गाँव में निर्वाह होता! जवान लड़की बैठी है,उसका भी कहीं ठिकाना लगाना है कि नहीं? मरने-जीने में आदमी बिरादरी....

गोबर ने बात काटी--हुक्का-पानी सब तो था,बिरादरी में आदर भी था,फिर मेरा ब्याह क्यों नहीं हुआ? बोलो। इसलिए कि घर में रोटी न थी। रुपए हों तो न हुक्का-पानी का काम है, न जात-बिरादरी का। दुनिया पैसे की है,हुक्का-पानी कोई नहीं पूछता।

धनिया तो बच्चे का रोना सुनकर भीतर चली गयी और गोबर भी घर से निकला। होरी बैठा सोच रहा था। लड़के की अकल जैसे खुल गयी है। कैसी बेलाग बात कहता है। उसकी वक्र बुद्धि ने होरी के धर्म और नीति को परास्त कर दिया था।

सहसा होरी ने उससे पूछा--मैं भी चला चलूंँ?

'मैं लड़ाई करने नहीं जा रहा हूँ दादा, डरो मत। मेरी ओर तो कानून है,मैं क्यों लड़ाई करने लगा?'

'मैं भी चलूंँ तो कोई हरज है?'

'हाँ,बड़ा हरज है। तुम बनी बात बिगाड़ दोगे।'

होरी चुप हो गया और गोबर चल दिया।

पाँच मिनट भी न हुए होंगे कि धनिया बच्चे को लिए बाहर निकली और बोली--क्या गोबर चला गया,अकेले? मैं कहती हूँ,तुम्हें भगवान कभी बुद्धि देंगे या नहीं। भोला क्या सहज में गोई देगा? तीनों उस पर टूट पड़ेंगे,बाज की तरह। भगवान ही कुशल करें। अब किससे कहूँ,दौड़कर गोबर को पकड़ ले। तुमसे तो मैं हार गयी।

होरी ने कोने से डण्डा उठाया और गोबर के पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर आकर उसने निगाह दौड़ाई। एक क्षीण-सी रेखा क्षितिज से मिली हुई दिखाई दी। इतनी ही देर में गोबर इतनी दूर कैसे निकल गया! होरी की आत्मा उसे धिक्कारने लगी। उसने क्यों गोबर को रोका नहीं। अगर वह डाँटकर कह देता, भोला के घर मत जाओ तो गोबर कभी न जाता। और अब उससे दौडा भी तो नहीं जाता। वह हारकर वहीं बैठ गया और बोला--उसकी रच्छा करो महाबीर स्वामी!

गोबर उस गाँव में पहुंँचा,तो देखा कुछ लोग बरगद के नीचे बैठे जुआ खेल रहे हैं। उसे देखकर लोगों ने समझा, पुलीस का सिपाही है। कौड़ियाँ समेटकर भागे कि सहसा जंगी ने उसे पहचानकर कहा--अरे,यह तो गोबरधन है।

गोबर ने देखा,जंगी पेड़ की आड़ में खड़ा झाँक रहा है। बोला--डरो मत जंगी भैया,मैं हूँ। राम-राम! आज ही आया हूँ। सोचा,चलूंँ सबसे मिलता आऊँ,फिर न जाने कब आना हो! मैं तो भैया,तुम्हारे आसिरबाद से बड़े मजे में निकल गया। जिस राजा की नौकरी में हूँ,उन्होंने मुझसे कहा है कि एक-दो आदमी मिल जायँ तो लेते आना। चौकीदारी के लिए चाहिए। मैंने कहा,सरकार ऐसे आदमी दूंँगा कि चाहे जान चली जाय,मैदान से हटनेवाले नहीं,इच्छा हो तो मेरे साथ चलो। अच्छी जगह है।