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गो-दान
 

गोविन्दी ने करुण स्वर में कहा-- हाँ, आपके सिवा मुझे कोई ऐसा नहीं नज़र आता जिससे मैं अपनी कथा सुनाऊँ। देखिए, यह बात अपने ही तक रखिएगा, हालाँकि आपसे यह याद दिलाने की ज़रूरत नहीं। मुझे अब अपना जीवन असह्य हो गया है। मुझसे अब तक जितनी तपस्या हो सकी, मैंने की; लेकिन अब नहीं सहा जाता। मालती मेरा सर्वनाश किये डालती है। मैं अपने किसी शस्त्र से उस पर विजय नहीं पा सकती। आपका उस पर प्रभाव है। वह जितना आपका आदर करती है, शायद और किसी मर्द का नहीं करती। अगर आप किसी तरह मुझे उसके पंजे से छुड़ा दें, तो मैं जन्म भर आपकी ऋणी रहूँगी। उसके हाथों मेरा सौभाग्य लुटा जा रहा है। आप अगर मेरी रक्षा कर सकते हैं, तो कीजिए। मैं आज घर से यह इरादा करके चली थी कि फिर लौटकर न आऊँगी। मैंने बड़ा जोर मारा कि मोह के सारे बन्धनों को तोड़कर फेंक दूंँ; लेकिन औरत का हृदय बड़ा दुर्बल है मेहताजी ! मोह उसका प्राण है। जीवन रहते मोह तोड़ना उसके लिए असम्भव है। मैंने आज तक अपनी व्यथा अपने मन में रखी; लेकिन आज मैं आपसे आँचल फैलाकर भिक्षा माँगती हूँ। मालती से मेरा उद्धार कीजिए। मैं इस मायाविनी के हाथों मिटी जा रही हूँ।...

उसका स्वर आँसुओं में डूब गया। वह फूट-फूट कर रोने लगी।

मेहता अपनी नज़रों में कभी इतने ऊँचे न उठे थे;उस वक्त भी नहीं,जब उनकी रचना को फ्रांस की एकाडमी ने इस शताब्दी की सबसे उत्तम कृति कहकर उन्हें बधाई दी थी। जिस प्रतिमा की वह सच्चे दिल से पूजा करते थे,जिसे मन में वह अपनी इष्टदेवी समझते थे और जीवन के अमूझ प्रसंगों में जिसमे आदेश पाने की आशा रखते थे,वह आज उनसे भिक्षा माँग रही थी। उन्हें अपने अन्दर ऐसी शक्ति का अनुभव हुआ कि वह पर्वत को भी फाड़ सकते हैं;समुद्र को तैरकर पार कर सकते हैं। उन पर नशा-सा छा गया,जैसे बालक काठ के घोड़े पर सबार होकर समझ रहा हो वह हवा में उड़ रहा है। काम कितना असाध्य है,इसकी मुधि न रही। अपने सिद्धान्तों की कितनी हत्या करनी पड़ेगी,बिलकुल खयाल न रहा। आश्वासन के स्वर में बोले--मझे न मालम था कि आप उससे इतनी दुखी हैं। मेरी बद्धि का दोष.आँखों का दोष,कल्पना का दोष। और क्या कहूँ,वरना आपको इतनी वेदना क्यों सहनी पड़ती!

गोविन्दी को शंका हुई। बोली--लेकिन सिंहनी से उसका शिकार छीनना आसान नहीं है,यह समझ लीजिए।

मेहता ने दढ़ता से कहा-नारी-हृदय धरती के समान है, जिससे मिठास भी मिल सकती है,कड़वापन भी। उसके अन्दर पड़नेवाले बीज में जैसी शक्ति हो।

'आप पछता रहे होंगे,कहाँ से आज इससे मुलाक़ात हो गयी।

'मैं अगर कहूँ कि मुझे आज ही जीवन का वास्तविक आनन्द मिला है,तो शायद आपको विश्वास न आये!'

'मैंने आपके सिर पर इतना बड़ा भार रख दिया।'

मेहता ने श्रद्धा-मधुर स्वर में कहा--आप मुझे लज्जित कर रही हैं देवीजी! मैं