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गो-दान
 


में पड़कर इस राह पर आये हैं। पहले धमकियाँ दिखा रहे थे,जब देखा इससे काम न चलेगा,तो यह चारा फेंका। मैंने भी सोचा,एक इनके ठीक हो जाने से तो देश से अन्याय मिटा जाता नहीं, फिर क्यों न इस दान को स्वीकार कर लूं। मैं अपने आदर्श से गिर गया हूँ ज़रूर;लेकिन इतने पर भी राय साहब ने दगा की,तो मैं भी शठता पर उतर आऊँगा। जो गरीबों को लटता है,उसको लूटने के लिए अपनी आत्मा को बहुत समझाना न पड़ेगा।


गाँव में खबर फैल गयी कि राय साहब ने पंचों को बुलाकर खूब डाँटा और इन लोगों ने जितने रुपए वसूल किये थे, वह सव इनके पेट से निकाल लिये। वह तो इन लोगों को जेहल भेजवा रहे थे;लेकिन इन लोगों ने हाथ-पाँव जोड़े,थूककर चाटा,तब जाके उन्होंने छोड़ा। धनिया का कलेजा शीतल हो गया,गाँव में घूम-घूमकर पंचों को लज्जित करती फिरती थी-आदमी न सुने गरीबों की पुकार,भगवान् तो सुनते हैं। लोगों ने सोचा था,इनसे डाँड़ लेकर मजे से फुलौड़ियाँ खायेंगे। भगवान् ने ऐसा तमाचा लगाया कि फुलौड़ियाँ मुँह से निकल पड़ीं। एक-एक के दो-दो भरने पड़े। अब चाटो मेरा मकान लेकर।

मगर बैलों के विना खेती कैसे हो? गाँवों में वोआई शुरू हो गयी। कार्तिक के महीने में किसान के बैल मर जायें,तो उसके दोनों हाथ कट जाते है। होरी के दोनों हाथ कट गये थे। और सब लोगों के खेतों में हल चल रहे थे। बीज डाले जा रहे थे। कही-कहीं गीत की ताने सुनायी देती थीं। होरी के खेत किसी अनाथ अबला के घर की भांति सूने पड़े थे। पुनिया के पास भी गोई थी;शोभा के पास भी गोई थी;मगर उन्हें अपने खेतों की बुआई से कहाँ फुरसत कि होरी की बुआई करें। होरी दिन-भर इधर-उधर मारा-मारा फिरता था। कहीं इसके खेत में जा बैठता,कही उसकी बोआई करा देता। इस तरह कुछ अनाज मिल जाता। धनिया,रूपा,सोना सभी दूसरों की बोआई में लगी रहती थी। जब तक बुआई रही,पेट की रोटियाँ मिलती गयीं,विशेष कप्ट न हुआ। मानसिक वेदना तो अवश्य होती थी;पर खाने भर को मिल जाता था। रात को नित्य स्त्री-पुरुष में थोड़ी-सी लड़ाई हो जाती थी।

यहाँ तक कि कार्तिक का महीना बीत गया और गाँव में मजदूरी मिलनी भी कठिन हो गयी। अब सारा दारमदार ऊख पर था,जो खेतों में खड़ी थी।

रात का समय था। सर्दी खूब पड़ रही थी। होरी के घर में आज कुछ खाने को न था। दिन को तो थोड़ा-सा भुना हुआ मटर मिल गया था;पर इस वक्त चूल्हा जलाने का कोई डौल न था और रूपा भूख के मारे व्याकुल थी और द्वार पर कौड़े के सामने बैठी रो रही थी। घर में जब अनाज का एक दाना भी नहीं है,तो क्या माँगे,क्या कहे!

जब भूख न सही गयी तो वह आग माँगने के बहाने पुनिया के घर गयी। पुनिया