नहीं था,मेरा कर्तव्य यह था कि स्वयं उसकी तहक़ीक़ात करता;लेकिन मुरौवत में सिद्धान्तों की कुछ न कुछ हत्या करनी ही पड़ती है। क्या उस संवाद में कुछ सत्य है?
राय साहब उसका सत्य होना अस्वीकार न कर सके। हालांँ कि अभी तक उन्हें जुरमाने के रुपए नहीं मिले थे और वह उनके पाने से साफ़ इनकार कर सकते थे;लेकिन वह देखना चाहते थे कि यह महाशय किस पहलू पर चलते हैं।
ओंकारनाथ ने खेद प्रकट करते हुए कहा--तब तो मेरे लिए उस संवाद को प्रकाशित करने के सिवा और कोई मार्ग नहीं है। मुझे इसका दुःख है कि मुझे अपने एक परम हितैषी मित्र की आलोचना करनी पड़ रही है। लेकिन कर्तव्य के आगे व्यक्ति कोई चीज़ नहीं। संपादक अगर अपना कर्तव्य न पूरा कर सके,तो उसे इस आसन पर बैठने का कोई हक़ नहीं है।
राय साहब कुरसी पर डट गये और पान की गिलौरियाँ मुंँह में भरकर बोले-- लेकिन यह आपके हक़ में अच्छा न होगा। मुझे जो कुछ होना है,पीछे होगा,आपको तत्काल दण्ड मिल जायगा;अगर आप मित्रों की परवाह नहीं करते,तो मैं भी उसी कैंडे का आदमी हूँ।
ओंकारनाथ ने शहीद का गौरव धारण करके कहा---इसका तो मुझे कभी भय नहीं हुआ। जिस दिन मैंने पत्र-सम्पादन का भार लिया,उसी दिन प्राणों का मोह छोड़ दिया,और मेरे समीप एक सम्पादक की सबसे शानदार मौत यही है कि वह न्याय और सत्य की रक्षा करता हुआ अपना बलिदान कर दे।
'अच्छी बात है। मैं आपकी चुनौती स्वीकार करता हूँ। मैं अब तक आपको मित्र समझता आया था;मगर अब आप लड़ने ही पर तैयार हैं,तो लड़ाई ही सही। आखिर मैं आपके पत्र का पंँचगुना चन्दा क्यों देता हूँ। केवल इसीलिए कि वह मेरा गुलाम बना रहे। मुझे परमात्मा ने रईस बनाया है। पचहत्तर रुपया देता हूँ;इसीलिए कि आपका मुँह बन्द रहे। जब आप घाटे का रोना रोते हैं और सहायता की अपील करते हैं,और ऐसी शायद ही कोई तिमाही जाती हो,जब आपकी अपील न निकलती हो, तो मैं ऐसे मौके पर आपकी कुछ न कुछ मदद कर देता हूँ। किसलिए! दीपावली,दसहरा,होली में आपके यहाँ वैना भेजता हूँ,और साल में पच्चीस वार आपकी दावत करता हूँ,किसलिए!आप रिश्वत और कर्तव्य दोनों साथ-साथ नहीं निभा सकते।'
ओंकारनाथ उत्तेजित होकर बोले--मैंने कभी रिश्वत नहीं ली।
राय साहब ने फटकारा--अगर यह व्यवहार रिश्वत नहीं है तो रिश्वत क्या है? ज़रा मुझे समझा दीजिए। क्या आप समझते हैं,आपको छोड़कर और सभी गधे हैं जो निःस्वार्थ-भाव से आपका घाटा पूरा करते हैं। निकालिए अपनी बही और बतलाइए अब तक आपको मेरी रियासत से कितना मिल चुका है। मुझे विश्वास है,हजारों की रकम निकलेगी;अगर आपको स्वदेशी-स्वदेशी चिल्लाकर विदेशी दवाओं और वस्तुओं का विज्ञापन छापने में शरम नहीं आती,तो मैं अपने असामियों से डाँड़,तावान