'नकद?'
'नक़द उसके पास कहाँ थे हजूर! कुछ अनाज दिया, बाक़ी में अपना घर लिख दिया।'
राय साहब ने स्वार्थ का पक्ष छोड़कर होरी का पक्ष लिया––अच्छा तो आपने और बगुलाभगत पंचों ने मिलकर मेरे एक मातवर असामी को तबाह कर दिया। मैं पूछता हूँ, तुम लोगों को क्या हक़ था कि मेरे इलाके में मुझे इत्तला दिये बगैर मेरे असामी से जुरमाना वसूल करते। इसी बात पर अगर मैं चाहूँ, तो आपको उस जालिये पटवारी और उस धूर्त पण्डित को सात-सात साल के लिए जेल भिजवा सकता हूँ। आपने समझ लिया कि आप ही इलाके के बादशाह हैं। मैं कहे देता हूँ, आज शाम तक जुरमाने की पूरी रकम मेरे पास पहुँच जाय; वरना बुरा होगा। मैं एक-एक मे चक्की पिसवाकर छोड़ेगा। जाइए, हाँ, होरी को और उसके लड़के को मेरे पास भेज दीजिएगा।
नोखेराम ने दबी ज़वान से कहा––उसका लड़का तो गाँव छोड़कर भाग गया। जिम रात को यह वारदात हुई, उसी रात को भागा।
राय साहब ने रोष मे कहा––झूठ मत बोलो। तुम्हें मालूम है, झूठ से मेरे बदन में आग लग जाती है। मैंने आज तक कभी नहीं सुना कि कोई युवक अपनी प्रेमिका को उसके घर में लाकर फिर खुद भाग जाय। अगर उसे भागना ही होता, तो वह उम लड़की को लाता क्यों? तुम लोगों की इसमें भी ज़रूर कोई शरारत है। तुम गंगा में डूबकर भी अपनी सफाई दो, तो मानने का नहीं। तुम लोगों ने अपने समाज की प्यारी मर्यादा की रक्षा के लिए उसे धमकाया होगा। बेचारा भाग न जाता, तो क्या करता!
नोखेराम इसका प्रतिवाद न कर सके। मालिक जो कुछ कहें वह ठीक है। वह यह भी न कह सके कि आप खुद चलकर झूठ-मच की जाँच करलें। बड़े आदमियों का क्रोध पूरा समर्पण चाहता है। अपने खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं सुन सकता।
पंचों ने राय साहब का यह फैसला सुना, तो नशा हिरन हो गया। अनाज तो अभी तक ज्यों का त्यों पड़ा था; पर रुपए तो कब के गायब हो गये। होरी का मकान रेहन लिग्खा गया था; पर उस मकान को देहात में कौन पूछता था। जैसे हिन्दू स्त्री पति के माथ घर की स्वामिनी है, और पति त्याग दे, तो कहीं की नहीं रहती, उसी तरह यह घर होरी के लिए लाख रुपए का है; पर उसकी असली क़ीमत कुछ भी नही। और इधर राय साहब विना रुपए लिए मानने के नहीं। यही होरी जाकर रो आया होगा। पटेश्वरीलाल सबसे ज्यादा भयभीत थे। उनकी तो नौकरी ही चली जायगी। चारों सज्जन इस गहन समस्या पर विचार कर रहे थे, पर किसी की अक्ल काम न करती थी। एक दूसरे पर दोप रखता था। फिर खूब झगड़ा हुआ।
पटेश्वरी ने अपनी लम्बी शंकाशील गर्दन हिलाकर कहा-मैं मना करता था कि होरी के विषय में हमें चुप्पी माधकर रह जाना चाहिए। गाय के मामले में सबको तावान देना पड़ा। इस मामले में तावान ही से गला न छूटेगा, नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा;