भोला की संकट-कथा सुनते ही उसकी मनोवृत्ति बदल गयी। पगहिया को भोला के हाथ में लौटाता हुआ बोला-रुपए तो दादा मेरे पास नहीं हैं, हाँ थोड़ा-सा भूसा बचा है,वह तुम्हें दूंगा। चलकर उठवा लो। भूसे के लिए तुम गाय बेचोगे,और मैं लूंगा। मेरे हाथ न कट जायेंगे?
भोला ने आर्द्र कण्ठ से कहा-तुम्हारे बैल भूखों न मरेंगे! तुम्हारे पास भी ऐसा कौन-सा बहुत-सा भसा रखा है।
'मैंने तुमसे नाहक भूसे की चर्चा की।'
'तुम न कहते और पीछे से मुझे मालूम होता, तो मुझे बड़ा रंज होता कि तुमने मुझे इतना गैर समझ लिया। अवसर पड़ने पर भाई की मदद भाई भी न करे, तो काम कैसे चले।'
'तो भूसे के दाम दूध में कटवा लेना।'
होरी ने दुःखित स्वर में कहा-दाम-कौड़ी की इसमें कौन बात है दादा,मैं एकदो जून तुम्हारे घर खा लूं,तो तुम मुझसे दाम
'भगवान कोई-न-कोई सबील निकालेंग ही। असाढ़ सिर
'मगर यह गाय तुम्हारी हो गयी। जिस दिन इच्छा हो आकर ले जाना।'
'किसी भाई का निलाम पर चढ़ा हुआ बैल लेने में जो पाप है,वह इस समय तुम्हारी गाय लेने में है।'
होरी में बाल की खाल निकालने की शक्ति होती,तो वह खुशी से गाय लेकर घर की राह लेता। भोला जब नकद रुपए नहीं माँगता तो स्पष्ट था कि वह भूसे के लिए गाय नहीं बेच रहा है,बल्कि इसका कुछ और आशय है; लेकिन जैसे पत्तों के खड़कने पर घोड़ा अकारण ही ठिठक जाता है और मारने पर भी आगे कदम नहीं उठाता वही दशा होरी की थी। संकट की चीज़ लेना पाप है,यह वात जन्म-जन्मान्तरों से उसकी आत्मा का अंश बन गयी थी।
भोला ने गद्गद् कंठ से कहा--तो किसी को भेज दूं भूसे के लिए?
होरी ने जवाब दिया-अभी मैं राय साहब की ड्योढ़ी पर जा रहा हूँ। वहाँ से घड़ी-भर में लौटूंगा,तभी किसी को भेजना। भोला की आँखों में आँसू भर आये। बोला-तुमने आज मुझे उबार लिया होरी भाई! मुझे अब मालूम हुआ कि मैं संसार में अकेला नहीं हूँ। मेरा भी कोई हितू है। एक क्षण के बाद उसने फिर कहा-उस बात को भूल होरी आगे बढ़ा, तो उसका चित्त प्रसन्न था। मन में एक विचित्र स्फूर्ति हो रही थी। क्या हुआ,दस-पाँच मन भूसा चला जायगा,बेचारे को संकट में पड़ कर अपनी