'यही सेवा और कर्तव्य आदि।'
'तो आपको ये विचार सौ साल पिछड़े हुए मालूम होते हैं! तो कृपा करके अपने ताजे विचार बतलाइए। दम्पति कैसे सुखी रह सकते हैं, इसका कोई ताजा नुसखा आपके पास है?'
खन्ना खिसिया गये। बात कही मालती को खुश करने के लिए, वह और तिनक उठी। बोली––यह नुसखा तो मेहता साहब को मालूम होगा।
'डाक्टर साहब ने तो बतला दिया और आपके ख्याल में वह सौ साल पुराना है, तो नया नुसखा आपको बतलाना चाहिए। आपको ज्ञात नहीं कि दुनिया में ऐसी बहुतसी बातें हैं, जो कभी पुरानी हो ही नहीं सकतीं। समाज में इस तरह की समस्याएँ हमेशा उठती रहती है और हमेशा उठती रहेंगी।'
मिसेज खन्ना बगमदे में चली गयी थीं। मेहता ने उनके पास जाकर प्रणाम करते हुए पूछा––मेरे भाषण के विषय में आपकी क्या राय है?
मिसेज खन्ना ने आँखें झुकाकर कहा––अच्छा था, बहुत अच्छा; मगर अभी आप अविवाहित हैं, जभी नारियाँ देवियाँ हैं, श्रेष्ठ हैं, कर्णधार हैं। विवाह कर लीजिए तो पूछूँगी, अब नारियाँ क्या हैं? और विवाह आपको करना पड़ेगा; क्योंकि आप विवाह से मुंह चुरानेवाले मर्दो को कायर कह चुके हैं।।
मेहता हँसे––उसी के लिए तो जमीन तैयार कर रहा हूँ।
'मिस मालती से जोड़ा भी अच्छा है।'
'शर्त यही है कि वह कुछ दिन आपके चरणों में बैठकर आपसे नारी-धर्म सीखें।'
'वही स्वार्थी पुरुषों की बात! आपने पुरुष-कर्त्तव्य सीख लिया है?'
'यही सोच रहा हूँ, किससे सीखूँ।'
'मिस्टर खन्ना आपको बहुत अच्छी तरह सिखा सकते हैं।'
मेहता ने कहकहा मारा––नहीं, मैं पुरुष-कर्त्तव्य भी आप ही से सीखूँगा।
'अच्छी बात है, मुझी से सीखिए। पहली बात यही है कि भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है और सारी जिम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का सारा भार है। नारी में सेवा और संयम और कर्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है। अगर उसमें इन बातों का अभाव है, तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है।'
मिर्ज़ा साहब ने आकर मेहता को गोद में उठा लिया और बोले––मुबारक!
मेहता ने प्रश्न की आँखों से देखा––आपको मेरी तक़रीर पसन्द आयी?
'तक़रीर तो खैर जैसी थी, वैसी थी; मगर कामयाब खूब रही। आपने परी को शीशे में उतार लिया। अपनी तक़दीर सराहिए कि जिसने आज तक किसी को मुँह नहीं लगाया, वह आपका कलमा पढ़ रही है।'
मिसेज खन्ना दबी ज़बान से बोली––जब नशा ठहर जाय, तो कहिए।
मेहता ने विरक्त भाव से कहा––मेरे जैसे किताब के कीड़ों को कौन औरत पसन्द करेगी देवीजी! मैं तो पक्का आदर्शवादी हूँ।