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गो-दान
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खन्ना ने दिल का गुबार निकाला––फ़िलॉसफ़र की दुम हैं। फ़िलॉसफ़र वह है, जो....

ओंकारनाथ ने बात पूरी की––जो सत्य से जौ-भर भी न टले।

खन्ना को यह समस्या पूर्ति नहीं रुची––मैं सत्य-वत्य नहीं जानता। मैं तो फ़िलॉसफ़र उसे कहता हूँ, जो फ़िलॉसफ़र हो सच्चा!

खुर्शेद ने दाद दी––फ़िलॉसफ़र की आपने कितनी सच्ची तारीफ़ की है। वाह सुभानल्ला। फ़िलॉसफ़र वह है, जो फ़िलॉसफ़र हो। क्यों न हो।

मेहता आगे चले––मैं नहीं कहता, देवियों को विद्या की ज़रूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक। मैं नहीं कहता, देवियों को शक्ति की ज़रूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक; लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं, जिससे पुरुष ने संसार को हिंसाक्षेत्र बना डाला है। अगर वही विद्या और वही शक्ति आप भी ले लेंगी, तो संसार मरुस्थल हो जायगा। आपकी विद्या और आपका अधिकार हिंसा और विध्वंस में नहीं, सृष्टि और पालन में है। क्या आप समझती हैं, वोटों से मानव-जाति का उद्धार होगा, या दफ्तरों में और अदालतों में ज़बान और क़लम चलाने से? इन नकली, अप्राकृतिक, विनाशकारी अधिकारों के लिए आप वह अधिकार छोड़ देना चाहती हैं, जो आपको प्रकृति ने दिये हैं?

सरोज अब तक बड़ी बहन के अदब से जब्त किये बैठी थी। अब न रहा गया। पुकार उठी––हमें वोट चाहिए, पुरुषों के बराबर।

और कई युवतियों ने हाँक लगायी-वोट! वोट!

ओंकारनाथ ने खड़े होकर ऊँचे स्वर से कहा––नारीजाति के विरोधियों को पगड़ी नीची हो।

मालती ने मेज़ पर हाथ पटककर कहा––शान्त रहो, जो लोग पक्ष या विपक्ष में कुछ कहना चाहेंगे, उन्हें पूरा अवसर दिया जायगा।

मेहता बोले––वोट नये युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है; उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी, न उधर की। कौन कहता है कि आपका क्षेत्र संकुचित है और उसमें आपको अभिव्यक्ति का अवकाश नही मिलता। हम सभी पहले मनुष्य हैं, पीछे और कुछ। हमारा जीवन हमारा घर है। वहीं हमारी सृष्टि होती है, वहीं हमारा पालन होता है, वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं; अगर वह क्षेत्र परिमित है, तो अपरिमित कौन-सा क्षेत्र है? क्या वह संघर्ष, जहाँ संगठित अपहरण है? जिस कारखाने में मनुष्य और उसका भाग्य बनता है, उसे छोड़कर आप उन कारखानों में जाना चाहती हैं, जहाँ मनुष्य पीसा जाता है, जहाँ उसका रक्त निकाला जाता है?

मिर्ज़ा ने टोका––पुरुषों के जुल्म ने ही तो उनमें बगावत की यह स्पिरिट पैदा की है।

मेहता बोले––बेशक, पुरुषों ने अन्याय किया है। लेकिन उसका यह जवाब नहीं है। अन्याय को मिटाइए; लेकिन अपने को मिटाकर नहीं।