दिन-दिन बढ़ती गयी और आज हम देख रहे हैं कि यह दानवता प्रचण्ड होकर समस्त संसार को रौंदती, प्राणियों को कुचलती, हरी-भरी खेतियों को जलाती और गुलज़ार बस्तियों को वीरान करती चली जाती है। देवियो, मैं आप से पूछता हूँ,क्या आप इस दानवलीला में सहयोग देकर, इस संग्राम-क्षेत्र में उतरकर संसार का कल्याण करेंगी? मैं आपसे विनती करता हूँ, नाश करनेवालों को अपना, काम करने दीजिए, आप अपने धर्म का पालन किये जाइए।
खन्ना बोले––मालती की तो गर्दन नहीं उठती।
राय साहब ने इन विचारों का समर्थन किया––मेहता कहते तो यथार्थ ही हैं।
'बिजली' सम्पादक बिगड़े––मगर कोई नयी बात तो नहीं कही। नारी-आन्दोलन के विरोधी इन्हीं ऊट-पटाँग बातों की शरण लिया करते हैं। मैं इमे मानता ही नहीं कि त्याग और प्रेम से संसार ने उन्नति की। संसार ने उन्नति की पौरुष से, पराक्रम से, बुद्धि-बल से, तेज से।
खुर्शेद ने कहा––अच्छा, सुनने दीजिएगा या अपनी ही गाने जाइएगा?
मेहता का भाषण जारी था––देवियों, मैं उन लोगों में नहीं हैं, जो कहते हैं, स्त्री और पुरुष में समान शक्तियाँ हैं, समान प्रवृत्तियाँ हैं, और उनमें कोई विभिन्नता नहीं है; इससे भयंकर असत्य की मैं कल्पना नहीं कर सकता। यह वह असत्य है, जो युगयुगान्तरों से संचित अनुभव को उसी तरह ढँक लेना चाहता है, जैसे बादल का एक टुकड़ा सूर्य को ढंक लेता है। मैं आपको सचेत किये देता हूँ कि आप इस जाल में न फंसें। स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है, जितना प्रकाश अँधेरे से। मनुष्य के लिए क्षमा और त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है। पुरुष धर्म और अध्यात्म और ऋषियों का आश्रय लेकर उस लक्ष्य पर पहुँचने के लिए सदियों से जोर मार रहा है: पर सफल नहीं हो सका। मैं कहता है उसका सारा अध्यात्म और योग एक तरफ़ और नारियों का त्याग एक तरफ़।
तालियाँ बजीं। हाल हिल उठा। राय साहब ने गद्गद् होकर कहा––मेहता वही कहते हैं, जो इनके दिल में है।
ओंकारनाथ ने टीका की––लेकिन बातें सभी पुरानी हैं, सड़ी हुई।
'पुरानी बात भी आत्मबल के साथ कही जाती है, तो नयी हो जाती है।'
'जो एक हज़ार रुपए हर महीने फटकारकर विलास में उड़ाता हो, उसमें आत्मबल जैसी वस्तु नहीं रह सकती। यह केवल पुराने विचार की नारियों और पुरुषों को प्रसन्न करने के ढंग हैं।'
खन्ना ने मालती की ओर देखा––यह क्यों फूली जा रही हैं? इन्हें तो शरमाना चाहिए।
खुर्शेद ने खन्ना को उकसाया––अब तुम भी एक तक़रीर कर डालो खन्ना, नहीं मेहता तुम्हें उखाड़ फेंकेगा। आधा मैदान तो उसने अभी मार लिया है।
खन्ना खिसियाकर बोले––मेरी न कहिए,मैंने ऐसी कितनी चिड़ियाँ फँसाकर छोड़ दी हैं।