चाहता है, जिसमें हिंसा नहीं, आत्मसमर्पण है। धरती इस वक्त मुंह खोलकर उसे निगल लेती, तो वह कितना धन्य मानती! उसने आगे क़दम उठाया।
लेकिन वह दो क़दम भी न गयी थी कि धनिया ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और हिंसा-भरे स्नेह से बोली––तू कहाँ जाती है बहू, चल घर में। यह तेरा घर है, हमारे जीते भी और हमारे मरने के पीछे भी। डूब मरे वह, जिसे अपनी सन्तान से बैर हो। इस भले आदमी को मुँह से ऐसी बात कहते लाज नहीं आती। मुझ पर धौंस जमाता है नीच! ले जा, बैलों का रकत पी...
झुनिया रोती हुई बोली––अम्माँ, जब अपना बाप होके मुझे धिक्कार रहा है, तो मुझे डूब ही मरने दो। मुझ अभागिनी के कारन तो तुम्हें दुःख ही मिला। जब से आयी, तुम्हारा घर मिट्टी में मिल गया। तुमने इतने दिन मुझे जिस परेम से रखा, माँ भी न रखती। भगवान मुझे फिर जनम दें; तो तुम्हारी कोख से दें, यही मेरी अभिलाषा है।
धनिया उसको अपनी ओर खींचती हुई बोली––वह तेरा बाप नहीं है, तेरा बैरी है; हत्यारा। माँ होती, तो अलबत्ते उसे कलंक होता। ला सगाई। मेहरिया जूतों से न पीटे, तो कहना!
झुनिया सास के पीछे-पीछे घर में चली गयी। उधर भोला ने जाकर दोनों बैलों को खूँटों से खोला और हाँकता हुआ घर चला, जैसे किसी नेवते में जाकर पूरियों के बदले जूते पड़े हों––अब करो खेती और बजाओ बंसी। मेरा अपमान करना चाहते हैं सब, न जाने कब का वैर निकाल रहे हैं, नहीं, ऐसी लड़की को कोन भला आदमी अपने घर में रखेगा। सब के सब बेसरम हो गये हैं। लौंडे का कहीं ब्याह न होता था इसीसे। और इस राँड़ झनिया की ढिठाई देखो कि आकर मेरे सामने खडी हो गयी। दसरी लड़की होती, तो मुँह न दिखाती। आँख का पानी मर गया है। सब के सब दुष्ट और मूरख भी हैं। समझते हैं, झुनिया अब हमारी हो गयी। यह नहीं समझते जो अपने बाप के घर न रही, वह किसी के घर नहीं रहेगी। समय खराब है, नहीं बीच बाजार में इस चुड़ैल धनिया के झोंटे पकड़कर घसीटता। मुझे कितनी गालियाँ देती थी।
फिर उसने दोनों बैलों को देखा, कितने तैयार हैं। अच्छी जोड़ी है। जहाँ चाहुँ, सौ रुपए में बेच सकता हूँ। मेरे अस्सी रुपए खरे हो जायँगे।
अभी वह गाँव के बाहर भी न निकला था कि पीछे से दातादीन, पटेश्वरी, शोभा और दस-बीस आदमी और दौड़े आते दिखायी दिये। भोला का लहू सर्द हो गया। अब फौजदारी हुई; बैल भी छिन जायँगे, मार भी पड़ेगी। वह रुक गया कमर कसकर। मरना ही है तो लड़कर मरेगा।
दातादीन ने समीप आकर कहा––यह तुमने क्या अनर्थ किया भोला ऐं! उसके बैल खोल लाये, वह कुछ बोला नहीं, इसी से सेर हो गये। सब लोग अपने-अपने काम में लगे थे, किसी को खबर भी न हुई। होरी ने जरा-सा इशारा कर दिया होता, तो तुम्हारा एक-एक बाल चुन जाता। भला चाहते हो, तो ले चलो बैल, जरा भी भलमंसी नहीं है तुममें।