साहब से क्या पूछना है। मैं जो चाहूँ,कर सकता हूँ। लगा दो सौ रुपए डाँड़। आप गाँव छोड़कर भागेगा। इधर बेदखली भी दायर किये देता हूँ।
पटेश्वरी ने कहा-मगर लगान तो बेबाक कर चुका है?
झिंगुरीसिह ने समर्थन किया--हाँ,लगान के लिए ही तो हमसे तीस रुपए लिये हैं।
नोखेराम ने घमण्ड के साथ कहा-लेकिन अभी रसीद तो नहीं दी। सबूत क्या है कि लगान वेबाक़ कर दिया।
सर्वसम्मति से यही तय हुआ कि होरी पर सौ रुपए तावान लगा दिया जाय। केवल एक दिन गाँव के आदमियों को बटोरकर उनकी मंजूरी ले लेने का अभिनय आवश्यक था। सम्भव था,इसमें दस-पाँच दिन की देर हो जाती। पर आज ही रात को झुनिया के लड़का पैदा हो गया। और दूसरे ही दिन गाँववालों की पंचायत बैठ गयी। होगे और धनिया,दोनों अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिए बुलाए गये। चौपाल में इतनी भीड़ थी कि कहीं तिल रखने की जगह न थी। पंचायत ने फैसला किया कि होरी पर सौ रुपए नक़द और तीस मन अनाज डाँड़ लगाया जाय।
धनिया भरी सभा में रुंधे हए कण्ठ से बोली--पंचो, गरीब को सताकर मुग्ख न पाओगे, इतना समझ लेना। हम तो मिट जायेंगे,कौन जाने,इस गाँव में रहें या न रहें,लेकिन मेरा सराप तुमको भी जरूर से जरूर लगेगा। मुझमे इतना कड़ा जरीबाना इसलिए लिया जा रहा है कि मैंने अपनी बहू को क्यों अपने घर में रखा। क्यों उसे घर से निकालकर सड़क की भिखारिन नही बना दिया। यही न्याय है,ऐं?
पटेश्वरी वोले--वह तेरी बहू नहीं है,हरजाई है।
होरी ने धनिया को डाँटा--तू क्यों बोलती है धनिया! पंच में परमेसर रहते हैं। उनका जो न्याय है,वह सिर आँखों पर;अगर भगवान् की यही इच्छा है कि हम गाँव छोड़कर भाग जायें,तो हमारा क्या वस। पंचो,हमारे पास जो कुछ है,वह अभी खलिहान में है। एक दाना भी घर में नहीं आया,जितना चाहो,ले लो। सब लेना चाहो,सब ले लो। हमारा भगवान मालिक है,जितनी कमी पड़े,उसमें हमारे दोनों बैल ले लेना।
धनिया दाँत कटकटाकर बोली-मैं न एक दाना अनाज दूंगी,न एक कौड़ी डाँड। जिसमें बूता हो,चलकर मुझसे ले। अच्छी दिल्लगी है। सोचा होगा डाँड़ के बहाने इसकी सब जैजात ले लो और नजराना लेकर दूसरों को दे दो। वाग-बगीचा बेचकर मजे से तर माल उड़ाओ। धनिया के जीते-जी यह नहीं होने का, और तुम्हारी लालसा तुम्हारे मन में ही रहेगी। हमें नहीं रहना है विरादरी में। बिरादरी में रहकर हमारी मुकुत न हो जायगी। अब भी अपने पसीने की कमाई खाते हैं,तब भी अपने पसीने की कमाई खायेंगे।
होरी ने उसके सामने हाथ जोड़कर कहा--धनिया,तेरे पैरों पड़ता हूँ,चुप रह। हम सब बिरादरी के चाकर हैं,उसके बाहर नहीं जा सकते। वह जो डाँड़ लगाती है,उसे सिर झुकाकर मंजूर कर। नक्कू बनकर जीने से तो गले में फाँसी लगा लेना अच्छा है। आज मर जाये,तो बिरादरी ही तो इस मिट्टी को पार लगायेगी? बिरादरी ही तारेगी तो तरेंगे। पंचो,मुझे अपने जवान बेटे का मुंह देखना नसीब न हो,अगर मेरे पास खलिहान