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गो-दान
 

इतना बड़ा अनर्थ कैसे सह ले!और उसकी मुटमर्दी तो देखो कि समझाने पर भी नहीं समझता। स्त्री-पुरुष दोनों जैसे समाज को चुनौती दे रहे हैं कि देखें कोई उनका क्या कर लेता है। तो समाज भी दिग्वा देगा कि उसकी मर्यादा तोड़नेवाले मुख की नींद नही सो सकते।

उसी रात को इस समस्या पर विचार करने के लिए गाँव के विधाताओं की बैठक हुई।

दातादीन बोले--मेरी आदत किसी की निन्दा करने की नहीं है। संसार में क्या क्या कुकर्म नहीं होता;अपने से क्या मतलब। मगर वह राँड़ धनिया तो मुझसे लड़ने पर उतारू हो गयी। भाइयों का हिस्मा दबाकर हाथ में चार पैसे हो गये, तो अब कुपंथ के सिवा और क्या मूझेगी। नीच जान, जहाँ गेट-भर रोटी खायी और टेढ़े चले,इसी से तो सासतरों में कहा है--नीच जात लतियाये अच्छा।

पटेश्वरी ने नारियल का कश लगाते हुए कहा--यही तो इनमें बुराई है कि चार पैमे देवे और आँग्वे बदलीं। आज होरी ने ऐसी हेकड़ी जतायी कि मैं अपना-सा मुँह लेकर रह गया। न जाने अपने को क्या समझता है। अब सोचो,इस अनीति का गाँव में क्या फल होगा। झुनिया को देखकर दूसरी विधवाओं का मन बढ़ेगा कि नहीं? आज भोला के घर में यह बात हुई। कल हमारे-तुम्हारे घर में भी होगी। समाज तो भय के बल मे चलता है। आज समाज का आँकुम जाता रहे,फिर देखो संमार में क्या-क्या अनर्थ होने लगते है।

झिगुरीसिंह दो स्त्रियों के पनि थे। पहली स्त्री पाँच लड़के-लड़कियाँ छोड़कर मरी थी। उस समय इनकी अवस्था पैतालिस के लगभग थी;पर आपने दूसरा व्याह किया और जब उसमे कोई सन्तान न हुई,तो तीसरा ब्याह कर डाला। अब इनकी पचास की अवस्था थी और दो जवान पत्नियाँ घर में बैठी हुई थी। उन दोनों ही के विषय में तरह-तरह की बातें फैल रही थीं;पर ठाकुर माहव के डर से कोई कुछ कह न सकता था, और कहने का अवसर भी तो हो। पति की आड़ में सब कुछ जायज़ है। मुसीबत तो उसको है,जिसे कोई आड़ नहीं। ठाकुर साहब स्त्रियों पर बड़ा कठोर शासन रखते थे और उन्हें घमण्ड था कि उनकी पत्नियों का घूँघट तक किसी ने न देखा होगा। मगर घूंघट की आड़ में क्या होता है,उसकी उन्हें क्या खबर?

बोले--ऐसी औरत का तो सिर काट ले। होरी ने इस कुलटा को घर रखकर समाज में विप बोया है। ऐसे आदमी को गाँव में रहने देना मारे गाँव को भ्रष्ट करना है। गय साहव को इसकी सूचना देनी चाहिए। साफ़-साफ़ कह देना चाहिए,अगर गाँव में यह अनीति चली तो किसी की आवरू मलामत न रहेगी।

पण्डित नोखेराम कारकुन बड़े कुलीन ब्राह्मण थे। इनके दादा किसी राजा के दीवान थे! पर अपना सब कुछ भगवान् के चरणों में भेंट करके साधु हो गये थे। इनके वाप ने भी राम-नाम की खेती में उम्र काट दी। नोखेराम ने भी वही भक्ति तरके में पायी थी। प्रातःकाल पूजा पर बैठ जाते थे और दस बजे तक बैठे राम-नाम लिखा करते थे;मगर भगवान् के सामने से उठते ही उनकी मानवता इस अवरोध से विकृत होकर उनके मन,वचन और कर्म सभी को विषाक्त कर देती थी। इस प्रस्ताव में उनके अधिकार का अपमान होता था। फूले हुए गालों में धँसी हुई आँखे निकालकर बोले--इसमें राय